Thursday 28 June 2012

सुभाषित


आज का विचार
1. राग सुख के संस्कार से उत्तपन्न होता है और द्वेष दुख के संस्कार से उत्तपन्न होता है| -पतंजलि
2. शत्रु के गुण को भी ग्रहण क्रना चाहिए, गुरु के दोष बताने में भी संकोच नही करना चाहिए-वेदव्यास
3. दुख को बार-बार स्मरण करने से दुख बढ़ता है, और दुख को भुला देने से दुख मर जाता है-वेदव्यास
4. असफलता निराशा का कारण नहीं है अपितु नयी प्रेरणा है|
5. देश भक्त का अर्थ है देश के प्रति प्रेम, धर्म के पार्टी भक्ति और स्वाभिमान|
6.जो प्रेम प्रिय से बँधता है उससे पुरुषार्थ क्षीण होता है तथा जो सिद्धांत से बँधता है उससे पुरुषार्थ में वृद्धि होती है-उपनिषद्|
7. मौन की शक्ति से मानसिक कल्पनाओं व स्वप्नों को साकार रूप प्रदान किया जा सकता है|
8.असंतुष्टि का कारण है निरंतर बढ़ती इच्छाएँ|
9. सदा मुस्कुराते रहो, यह भी संतुष्टता की निशानी है|
10. समाज उत्थान में लगे व्यक्ति के तीन लक्षण होते हैं- सहानुभूति, श्रद्धा और वैराग्य-स्वामी विवेकानंद|
11. इस धरती पर हमारे पैदा होने का एक कारण है उस कारण का पता करोऔर पूर्ण मनोयोग से लग जाओ-स्वामी विवेकानंद|
12.राष्ट्र जीवन कमज़ोर होने पर राजनीति, समाज, शिक्षा और बुद्धि रोग ग्रस्त हो जाती है-स्वामी विवेकानंद|
13. संकल्प करने से कार्य की गति बढ़ जाती है और लक्ष प्राप्ति में कम समय लगता है|
14. जीवन में सफल होने के लिए टीन बातें कही गयी है-पुरुषार्थ, पूर्व कर्म और परमेश्वर की कृपा|
15. हमारी कथनी और करनी में अंतर नही होना चाहिए|
16. जो जीवन के दोषों को दूर करता है उसे ज्ञान कहते हैं|
17. अपने दुर्गुन भी अपने शत्रु होते हैं|
18. जहाँ भक्ति होती है वहाँ वासना नहीं होती|
19. बुराई स्वतः आती है अच्छे बने रहने के लिए प्रयास करना पड़ता है|
20. जब भी विचार प्रस्तुत करने का अवसर मिले हमे बोलना चाहिए ऐसा न कर, हो सकता है हम एक उत्तम विचार की हत्या कर दें|
21. जो समाज अपने भूतकाल से सबक न्ही लेता उसे अभिशप्त होना पड़ता है|
22. जो युवा अवस्था में तेजस्वी होता है वह बड़ा होकर महान बनता है|


सुभाषित
1. केतुम क्रिनव्न्न्केतवे पेशो मर्या अपेशसे समुष्दभीरजायते ||
अर्थ-  जो पुरुष अपने ही समान दूसरों को भी सुखी देखने की कामना रखते हैं,उनके पास रहने से विद्या प्राप्त होती है, अज्ञान का अंधकार दूर होता है, धन प्राप्त होता है और दरिद्रता का विनाश होता है| अतएव हम सब आटंदर्शी पुरुषों के समीप रहें|
2. धूलि धूसरितम बीजा वृक्षरूप्ेण वर्धते  | सरितसागर्तमेति गत्गर्वस्तथोच्च्ताम  ||
अर्थ- जैसे बीज मितकर वृक्ष बन जाता है, सरिता स्वयं को मिटाकर सागर बन जाती है, उसी प्रकार मनुष्य भी अहंकार का त्याग करके परम उच्च परमात्म को प्राप्त कर लेता है|
3. सर्वत्रानवधानस्य न किन्चिद्वासना ह्रिदि  |
   मकतात्मानो वितृप्तस्य तुलना केन जायते  || अष्तावक्र गीता
अर्थ- जिसकी कहीं कोई आसक्ति नही है, जिसके हृदय में कहीं कोई वासना नहीं है,जो भली भाँति संतुष्ट है, उसकी तुलना किससे की जा सकती है, किसी से नही वह अतुलनीय है|
4. उद्यमेन ना सिद्ध्यन्ति कार्याणी न मनोरथे:  | नही सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशांति मुखे मृगा  ||
अर्थ-  समस्त कार्य उधयम से ही पूर्ण होते हैं, कोवल मनोरथ से नहीं| सोते हुए सिंह के मुख में पशु अपने आप प्रवेश नहीं करते|
5. धर्मअर्थ च काम च मोक्षम च जराया पुनः  |
   शकतह साधियितुम तस्माद युवा धर्म समाचरेत्  ||
अर्थ- बुढ़ापे से आक्रांत होने पर मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनमे से किसी का भी साधन नहीं कर सकता. इसलिए युवावस्था में ही धर्म का आचरण कर लेना चाहिए.
6. कौमार अचिरत प्रागयौ धर्मान भागगावतनी  |
   दुर्लभं मनुषा जन्म तद्प्यध्रुवमर्थदम  ||
अर्थ-  इस संसार में माँव जन्म दुर्लभ है| इसमें परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है| पता नहीं इसका कब अंत हो जाए, इसलिए बुधीमान मनुष्य को बचपन में ही भागवत धर्मों का आचरण कर लेना चाहिए.
7. नजातु कामन्ना, भयन्ना, लोभाद, धर्म त्यजेज्जीवीतस्यापी हेतो:  |
   नित्यो धर्म: सुखेदुखे: त्वनित्य, जीवो नित्यो हेतुरस्यो त्वनित्य:  ||
अर्थ-  मनुष्य को किसी भी समय काम से,भय से, लोभ से या जीवन रक्षा के लिए भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए, क्योंकि धर्म नित्य है और सुख-दुख अनित्य है और जीवन का हेतु अनित्य है|
8. कामक्रोधौ तथा लोभं स्वादु शृंगार कौतुके  |
   अतिनिद्रा अतिसेवेच विद्यार्थी हृष्ट वर्जयते  ||
अर्थ-  विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि वह काम , क्रोध, तथा लोभ से और स्वादिष्ट पदार्थों के सेवन, शृंगार व हँसी-मज़ाक से डोर रहे| निद्रा और शरीर सेवा में अधिक ध्यान ना दे| इन आठों के त्याग से ही विद्यार्थी को विद्या प्राप्त हो सकती है|

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