Thursday 28 June 2012

गोविंद मेरो है गोपाल मेरो है

सिरसागंज। ग्राम मलहापुर धाम में 1008 नाथ बाबा के आशीष से श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया गया। कथा का शुभारंभ अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष विश्व हिंदू परिषद अशोक सिंघल ने किया था।
कथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कथा का आरंभ गोविंद मेरो है गोपाल मेरो है भजन के साथ किया। भजन की संगीतमयी धुन पर श्रद्धालु भक्ति रस में डूब गये। अतुल कृष्ण महाराज ने बताया कि श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को देखने के लिये देव लोक के देवतागण भी इतने आतुर होते थे कि रूप बदल कर पृथ्वी लोक पर आते थे और उनकी लीलाओं में शामिल होकर आनंद लिया करते थे। कथा वाचक ने श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान कृष्ण की सभी लीलाएं समाज को प्रेरणा देने के लिये थीं और आज भी इन लीलाओं द्वारा अपने आप को सच्चाई के मार्ग पर रखते हुऐ प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। साथ ही कथा वाचक द्वारा श्रद्धालुओं को यह भी बताया गया कि श्रीकृष्ण को इस युग में अवतार लेकर कई भक्तों का उद्धार भी अपने हांथों से करना था और अपने बाल्यकाल में ही भगवान ने कई भक्तों का उद्धार असुरों के रूप में किया। कथा के अंत में सभी भक्तों ने प्रभु की आरती की। कथा में डा. शैलेंद्र कुमार, प्रदीप कुमार शर्मा, निष्काम शर्मा, अभिलाषा मिश्र आदि का सहयोग रहा।

भगवान का नाम लेने से मंगल ही मंगल : अतुल जी महाराज

भगवान को मानना भक्ति नहीं है। परमात्मा से कोई न कोई संबंध मानना हो भक्ति है। संबंध बढ़ने से भक्ति बढ़ती जाती है। उक्त बातें अ‌र्द्धकुंभ के विशाल ज्ञान मंच से श्री मद् भागवत कथा के दौरान अतुल कृष्ण भारद्वाज जी ने कहीं। श्री अतुल जी ने कहा कि भगवान का नाम जैसे भी लो मंगल ही मंगल है। सिर्फ भावना सच्ची होनी चाहिये। भगवान भक्त की आवाज सुन चले जाते हैं। वहीं उन्होंने भागवत कथा के दौरान कृष्ण जन्मोत्सव की विस्तृत चर्चा की। कथा के बीच में मेरा अवगुण भरा शरीर, प्रभु जी कैसे तारोंगे जैसे अन्य भक्तिमय भजनों पर श्रद्धालुगण झूमते रहें। उन्होंने कहा कि सिमरिया में जितना भजन करोगे। अनंत फल पाओगे।


भय प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी

मुरादाबाद। हर किसी में भगवान राम के दर्शन की ललक, भजनों की प्रस्तुति पर कदम स्वत: थिरकने को विवश, श्री राम के नाम का जयघोष और भक्ति भाव से सराबोर करती पुष्प वर्षा। यह नजारा था पीतल नगरी में राम कथा के दौरान पंडाल का। 
श्री राम कथा आयोजन समिति के तत्वावधान में चल रही राम कथा में कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज ने श्री राम जन्मोत्सव का वर्णन किया तो पंडाल मानों श्री राम की भक्ति रस के समुद्र में समा गया। जयकारे और रामायण की चौपाई ‘ भय प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी’ से पंडाल गूंज उठा। भक्तों ने पुष्प वर्षा कर श्री राम का स्वागत किया। कथा व्यास ने कहा भगवान श्री राम के जन्म पर ऋषि मुनि और देवता भी उनके दर्शन करने राजा दशरथ के महल पहुंचे थे। उन्होंने कहा श्री राम से बड़ा दो अक्षरों का उनका नाम है। इसके जप से मनुष्य बंधनों से मुक्त हो जाता है। महाराज ने कहा संसार में माता पिता का स्थान सर्वोपरि है। उनकी सेवा ही सबसे बड़ी भक्ति है। उन्होंने श्री राम जन्म के अनेक प्रसंग सुना कर भक्त समुदाय को भक्ति रस धार से सराबोर कर दिया। इससे पूर्व यजमान अखिलेश कुमार गुप्ता और चंदर प्रजापति ने पूजन कराया। व्यवस्था में श्याम कृष्ण रस्तोगी, देवेश वशिष्ठ, विमलेश शर्मा, दिनेश शर्मा, राम कृपाल गुप्ता, निशांक शर्मा, राज कुमार शर्मा, श्याम लाल सैनी, मनोज व्यास, राम प्रकाश कश्यप, अशोक कुमार प्रजापति, नीना भटनागर, आशा यादव, शशि यादव, रानी सैनी, रानी सैनी आदि का सहयोग रहा। संचालन हिमांशु वशिष्ठ ने किया।


अर्थ और काम भोग में धर्म नीति से ही मोक्ष 
कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज से वार्ता 
मुरादाबाद। कथा व्यास अतुल कृष्ण महाराज ने कहा है राजनीति तोड़ती है, राम नीति जोड़ती है। जो दुनिया में अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करेगा वही भगवान है। कथा व्यास पीतल नगरी में वार्ता कर रहे थे। उन्होंने कहा धर्म और काम का भोग धर्म के अनुसार करने से ही मोक्ष मिलता है। महाराज ने बच्चों से कोर्स से झांकी की रानी लक्ष्मी बाई और महाराणा प्रताप की हल्दी की घाटी का वर्णन हटाने पर चिंता जताई। कहा इंग्लैंड में प्रमुख पांच दुश्मनों में आज भी झांकी की रानी का नाम अंकित है। बोले विदेशों में भी भारतीय संस्कृति और देवताओं का सम्मान है। मलेशिया में अगत्स्य ऋषि की प्रतिमा की आराधना होती है। थाईलैंड के राजा को राम कहा जाता है। इंडोनेशिया का मुस्लिम वर्ग रामलीला का सराहनीय मंचन करता है। इंग्लैंड में युवा पीढ़ी को संस्कृति से जोड़ने के लिये श्री राम का पाठ पढ़ाया जाने लगा है। अंकोरा वाड और कंबोडिया के बीच भगवान विष्णु का अस्सी वर्ग किमी में फैला दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है। मलेशिया में गरुण के नाम से एयर लाइन है। इसके बाद भी अपने देश में भारतीय संस्कृति और मर्यादा से युवा वर्ग का दूर होना चिंता का विषय है।

भक्ति के बिना जीवन व्यर्थ : अतुल कृष्ण


मुरादाबाद : मानस मर्मज्ञ अतुल कृष्ण भारद्वाज ने रामकथा की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि भक्ति के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।
बुधवार को रामकथा के चौथे दिन उन्होंने महर्षि दयानंद कालोनी पीतल बस्ती पार्क में रामकथा में प्रभु श्रीराम की बाल लीलाओं को संगीतमय वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भगवान मनुष्य के मन के अंदर निवास करते हैं लेकिन वह उन्हें तीर्थ स्थानों और मंदिरों में तलाश करता है। कहा कि जिस प्रकार कस्तूरी मृग की नाभि में होती है लेकिन वह उसकी तलाश में जंगल में भटकता रहता है। उसी प्रकार मनुष्य भी भगवान को अपने अंदर नहीं तलाशता। कहा कि गुरु भगवान तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा रूपी राम में भक्ति रूपी सीता नहीं है तो जीवन का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने जीवन को यज्ञ की भांति बताते हुए कहा कि इसमें मनुष्य अपने कर्मो की पूर्णाहुति देता है। मानस मर्मज्ञ ने कहा कि मानव जीवन पाने के बाद भक्ति मिल जाए तो यही जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। मनुष्य कितना भी योग्य क्यों न हो एक निश्चित समय के बाद उसकी काम करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। उन्होंने भजनों से भाव विभोर भी किया। व्यवस्था में रामकथा आयोजन समिति के अध्यक्ष रामकृपाल गुप्ता, देवेश वशिष्ठ, श्याम कृष्ण रस्तोगी, विलकेश शर्मा, नीरज त्रिपाठी, दिनेश शर्मा, निशांक शर्मा, राजकुमार, वीरेंद्र शर्मा, पंकज त्रिपाठी, पुनीत गुप्ता, महेश शर्मा, श्याम ठाकुर, प्रीतम सिंह, कन्हई सिंह यादव, कृष्ण कुमार यादव आदि ने सहयोग किया। उधर रामकथा प्रसार मंच की ओर से कुंदनपुर लाइनपार में आयोजित रामकथा महोत्सव के दूसरे दिन कथा वाचक अभय कांत त्रिवेदी ने रामकथा का महत्व बताते हुए जीवन की सफलता के लिए इसकी शिक्षाओं पर अमल करने की जरूरत बताई। चार वर्षीय बाल व्यास श्रीराम भारद्वाज ने भजनों से भाव विभोर किया।

श्रीराम के आदर्शो पर चलकर ही समाज का उत्थान

रुद्रपुर: कथावाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज कहते हैं कि त्रेता युग में शिक्षा-दीक्षा वर्तमान युग की तरह नहीं होती थी। गुरुओं के आश्रमों में महल व घर त्याग कर लोग शिक्षा ग्रहण करते थे। साथ ही शिक्षा में भेदभाव नहीं होता था। उनका कहना है कि श्रीराम के आदर्शो पर चलकर ही समाज का विकास किया जा सकता है। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर किया जा सकता है। भारत विकास परिषद की ओर से गांधी पार्क में चल रही श्रीराम कथा में बुधवार को पांचवें दिन मुख्य यजमान के तौर पर व्यवसायी विजय भूषण गर्ग तथा पूजक के रूप में ओमप्रकाश अरोरा, मनोज अरोरा, राजेंद्र तुल्सियान, रोहित गोयल, बलजीत सिंह तलवार, मंगल सिंह ने सपरिवार हिस्सा लिया। दूधिया मंदिर के महंत शिवानंद महाराज, जिपं सदस्य उर्मिला रानी चुघ, पूनम चंद अग्रवाल, प्रगति अग्रवाल, रीना चौधरी, नीलम कालड़ा, रामगोपाल गुप्ता, भारत भूषण चुघ, महेंद्र गोयल, मदनलाल खेड़ा, रोशनलाल अग्रवाल, मुखखराज गुलाटी, नंदलाल अरोरा, जगदीश अनेजा, अमित मित्तल, कृष्णलाल अरोरा, डॉ. वेदप्रकाश गुप्ता, आनंद अग्रवाल कथा सुनने पहुंचे।


सुख संग्रह से नहीं अपितु त्याग से


मोदीनगर[संस]। श्रीरामकथासेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित रामकथा के प्रसंग पर कथा व्यास संत अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि जगत में वस्तुओं से सुख प्राप्त करने की प्रवृत्ति बढती जा रही है। जब कि सुख संग्रह से नहीं अपितु त्याग से प्राप्त होता है।
मुलतानीमलमोदी डिग्री कालेज प्रांगण में चल रही कथा में कथा व्यास संत भारद्वाज ने कहा कि भगवान राम व भरत से आदर्श की शिक्षा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य को लेने की बजाए देने की प्रवृत्ति अपनाने का प्रयास करना चाहिए। संत ने बताया कि जीवन में दान-धर्म करने से आनंद की प्राप्ति होती है। जो नि:संकोच मन से दान करता है, उसका पाप एवं भय नष्ट हो जाता है।
उन्होंने कहा कि राम नाम जपने से परमात्मा का जीवात्मा से मिलन होता है। मनुष्य की यह भूल है कि वह सुख प्राप्त होने पर ईश्वर को भूल जाता है। गर्भ में वायदा करता है कि मैं आपका निरंतर भजन करूंगा परंतु बाहर आते ही वह माया में लिप्त हो जाता है। गृहस्थ के बंधन में रहकर प्रभु से प्रेम नहीं करता है। स्वतंत्र होते हुए भी अपने परतंत्र समझता है। प्रत्येक काल में ईश्वर को याद करते रहना चाहिए।

गुरू के चरणों में है सारा सुख: अतुल कृष्ण


संवाद सूत्र, बीहट (बेगूसराय): बरौनी प्रखंड अंतर्गत केशावे पंचायत के मकरदही गांव में 25 फरवरी से 5 मार्च तक चलने वाले श्रीश्री 1011 विष्णु महायज्ञ के प्रारंभ होने के बाद सोमवार की देर शाम राम कथा वाचक श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज ने अपने मधुर कथाओं से सारे भक्तगणों व श्रोताओं को भक्ति रस में डूबो दिया।
ज्ञान मंच से अतुल जी ने कहा
कि गुरु सर्वोपरि है। गुरु के चरणों में संसार का सारा सुख मिलता है। गुरु से ज्ञान के बाद ही हृदय की आंखें खुलती हैं। राम के बिना संसार में सब कुछ बेकार है। उन्होंने कहा कि जहां भगवान की कथा होती है, वहां अमृत की वर्षा होती है। कथा के बाद आरती में पूर्व विधायक प्रो. प्रमोद कुमार शर्मा, संयोजक शंकर सिंह, अमरेन्द्र कुमार लल्लू, रामजनम सिंह, महंत ब्रजमोहन दास, रूपेश सिंह सहित अन्य ने आरती में भाग लिया। साथ ही अतुल जी महाराज को यज्ञ आयोजन समिति के संयोजक शंकर सिंह के द्वारा चादर ओढ़ा कर सम्मानित किया गया।

84 लाख योनियों में श्रेष्ठ है गौमाता : अतुल महाराज

पुराना मंडी परिसर में आयोजित श्रीराम कथा का रविवार को समापन हुआ। अंतिम दिन सुबह से ही चित्रकूट धाम में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। पंडाल में प्रवेश करते ही गौमाता की सुंदर प्रतिमा सजी थी।
सुबह दस बजे कथा प्रारंभ हुई। संत अतुल कृष्ण भारद्वाज ने गौवंश की महिमा का बखान करते हुए कहा कि चौरासी लाख योनियों में गौमाता श्रेष्ठ है और इनकी सेवा से ही जीवन को सफलता मिलेगी। केवल गाय को ही पूजनीय माना गया है, क्योंकि गौ में पूरा ब्रम्हांड समाया हुआ है। 84 लाख योनियां गौमाता में समाहित है। गौ के मूत्र से लेकर सब कुछ उपयोगी है। आज आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पुरातन संस्कृति को पीछे छोड़ पाश्चात्य के पीछे दौड़ रहे हैं। आज घरों में हालात यह है कि कुत्ता पालने के लिए जगह है, लेकिन गाय के लिए नहीं। संतश्री ने कहा कि वात्सल्य शब्द ही बछड़े से बना है। जब हमें अपने बच्चे पर अत्यधिक प्रेम उमड़ता है, तब हमारे मुंह से वात्सल्य के रूप में अनायास यह शब्द निकल पड़ता हैं। अत्यधिक प्रेम में डूबे मां बच्चे को गोद में लेते हुए कहती है आ जाओ मेरे बछड़े, मेरे लाड़ले। उन्होंने कहा कि वात्सल्य का सही रुप अगर देखना है तो गौमाता को अपने बछड़े से दुलार करते देखे। इसी तरह का प्रेम कौशिल्या और भरत के बीच देखने को मिला। जब कैकैई माता ने राम को 14 वर्ष का वनवास देकर भरत को राजगद्दी में बिठाना चाहा, तब भरत व्याकुल हो गए। व्याकुल गद्दी मिलने को लेकर नहीं, बल्कि राम से दूर होने को लेकर था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम से छोटे भाई भरत किसी भी कीमत पर राम से दूर रह नहीं सकता था, अत: स्वार्थी मां कैकई का त्याग कर दौड़े दौड़े कौशिल्या के पास आई। कौशिल्या माता को रो-रोकर कहने लगा, माता मुझे राजगद्दी नहीं चाहिए। बड़े भैय्या राम को वनवास भेजने के षडयंत्र में मेरा कोई सहभागी नहीं है। बार-बार स्पष्टीकरण देते रहे कि मुझे राजगद्दी नहीं, बल्कि भैय्या राम प्यारा है। भरत कैकैई के पुत्र होने के बाद भी कौशिल्या को ही मानता था। कैकैई की कुटिल चाल से राम को वनवास तो हो गया, लेकिन भरत कभी भी गद्दी पर नहीं बैठा। राज काज चलाने के लिए उसने बड़े भैय्या राम का चरण पादुका सिंहासन में रखा और उसके बाजू में बैठकर पूरे चौदह बरस तक अयोध्यावासियों की सेवा की। भरत और कौशिल्या माता का अगाध प्रेम गौमाता की ही तरह थी।
कथा के बाद महाआरती हुई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। प्रसादी वितरण के साथ श्रीराम कथा का समापन हुआ। अंतिम दिन कथा सुनने के लिए आसपास गांवों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। इस अवसर पर आयोजन समिति के अध्यक्ष डा. प्रभात गुप्ता, प्रकाश गांधी, दीपक चोपड़ा, दिलीपराज सोनी, सुबोध राठी, सुरेश गुप्ता, विष्णु प्रसाद हिरवानी, गिरधारी लाल अग्रवाल, विनोद जैन, जानकी प्रसाद शर्मा, शरद फौजदार, प्रीतेश गांधी, शिवओम बैगा नाग उपस्थित थे।

रूप की जगह हृदय को देखें: अतुल जी

चित्रकूट धाम पुराने मंडी परिसर में चल रही श्रीराम कथा के आठवें दिन संत अतुल कृष्ण भारद्वाज ने प्रभु श्रीराम के पंचवटी में विश्राम का प्रसंग सुनाया।
उन्होंने पंचवटी का महत्व बताते हुए कहा कि हर वृक्ष का अपना अपना महत्व है। पाकड़, आम, पीपल, आंवला, वट के वृक्ष अवश्य लगाना चाहिए। प्रभु श्रीराम के आने से पंचवटी और भी हरी-भरी हो गई, क्योंकि प्रभु प्रकृति प्रेमी हंै। आज हम प्रकृति से दूर हो रहे हंै। अपनी जीवन शैली को अप्राकृतिक बना दिया है। हमें अपने घर अथवा घर के आसपास वृक्ष लगाने चाहिए।
सूर्पणखा प्रसंग का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि सूर्पणखा प्रभु श्रीराम का दर्शन करते ही उन पर मुग्ध हो गई। प्रभु ने उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया और लक्ष्मण ने प्रभु के पास। इस प्रकार जब वह काफी परेशान हो गई तब उसने क्रोधित होकर भक्ति रूपी सीता पर आक्रमण कर दिया। तब लक्ष्मण ने उसकी नाक, कान काटकर उसके रूप को बिगाड़ दिया। इस तरह प्रभु हमें शिक्षा देते हंै कि हमें रूप मोह में न पड़कर भक्ति रूपी हृदय को देखना चाहिए।शनिवार को कथा सुनने छत्तीसगढ़ नि:शक्तजन आयोग के अध्यक्ष इंदर चोपड़ा, जिला भाजपा अध्यक्ष निरंजन सिन्हा, डा. प्रभात गुप्ता, राजेंद्र शर्मा, एलपी गोस्वामी, दयाराम साहू, सुरेश गुप्ता, रमशीला साहू, वीरेंद्र श्रीवास्तव, रूपनारायण सिन्हा, भुवनलाल टेंगे, प्रकाश गोलछा, प्रकाश गांधी, सुबोध राठी, प्रहलाद साहू, लक्ष्मण राव मगर, दिलीप पटेल, यशवंत गजेंद्र, राजकुमार क्षत्री, गिरधारी लाल अग्रवाल, देवेंद्र, समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

रामकथा आंदोलन : श्री अतुल कृष्ण जी


रामकथा आंदोलन : श्री अतुल कृष्ण जी
श्रीराम कथा अंतरराष्ट्रीय आंदोलन है जिससे पूरे विश्व की तस्वीर बदल रही है। विश्व के एक करोड़ अंग्रेज हिंदू धर्म को स्वीकार कर उसकी मान्यताओं में जी रहे हैं। यह विचार वृंदावन के प्रसिद्ध कथावाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कही। वह रविवार को कारसेवकपुरम में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध अभिनेत्री जूलिया राबर्ट व जुरासिक पार्क फिल्म के निर्देशक स्टीफन आदि हिंदू धर्म को आत्मसात कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि बुद्धिमान अंग्रेज हिंदुत्व को अपना रहे हैं जबकि उनके देश के लोग भारत के आदिवासियों व वनवासियों के रूप में अशिक्षित लोगों को बरगला कर इसाई धर्म से जोड़ रहे हैं। भगवान राम ने शांति की स्थापना के लिए रावण जैसे समृद्ध योद्धा से शून्य बजट में लड़ाई जीत ली। गोस्वामी तुलसीदास ने जी उनकी लीलाओं में आधारित रामचरितमानस की रचना कर देश को विदेशी संस्कृति से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्रीराम से जुड़ना भारत की राष्ट्रीयता से जुड़ना है और उनका विरोध भारत उसकी संस्कृति का द्रोह है। उन्होंने कहा कि विज्ञान की प्रगति ने पूरी दुनिया को अशांत कर दिया है। घरेलू गैस की आंच पर सीधे सेंकी गई रोटी ब्यूटेन गैस के प्रभाव के कारण जहरीली हो जाती है। उन्होंने कहा कि रामनाम की माला जपने से ही नहीं धर्म की स्थापना से देश का कल्याण होगा। उन्होंने कहा कि अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण हुआ तो इसका कायाकल्प स्वत: हो जाएगा।

सुभाषित


आज का विचार
1. राग सुख के संस्कार से उत्तपन्न होता है और द्वेष दुख के संस्कार से उत्तपन्न होता है| -पतंजलि
2. शत्रु के गुण को भी ग्रहण क्रना चाहिए, गुरु के दोष बताने में भी संकोच नही करना चाहिए-वेदव्यास
3. दुख को बार-बार स्मरण करने से दुख बढ़ता है, और दुख को भुला देने से दुख मर जाता है-वेदव्यास
4. असफलता निराशा का कारण नहीं है अपितु नयी प्रेरणा है|
5. देश भक्त का अर्थ है देश के प्रति प्रेम, धर्म के पार्टी भक्ति और स्वाभिमान|
6.जो प्रेम प्रिय से बँधता है उससे पुरुषार्थ क्षीण होता है तथा जो सिद्धांत से बँधता है उससे पुरुषार्थ में वृद्धि होती है-उपनिषद्|
7. मौन की शक्ति से मानसिक कल्पनाओं व स्वप्नों को साकार रूप प्रदान किया जा सकता है|
8.असंतुष्टि का कारण है निरंतर बढ़ती इच्छाएँ|
9. सदा मुस्कुराते रहो, यह भी संतुष्टता की निशानी है|
10. समाज उत्थान में लगे व्यक्ति के तीन लक्षण होते हैं- सहानुभूति, श्रद्धा और वैराग्य-स्वामी विवेकानंद|
11. इस धरती पर हमारे पैदा होने का एक कारण है उस कारण का पता करोऔर पूर्ण मनोयोग से लग जाओ-स्वामी विवेकानंद|
12.राष्ट्र जीवन कमज़ोर होने पर राजनीति, समाज, शिक्षा और बुद्धि रोग ग्रस्त हो जाती है-स्वामी विवेकानंद|
13. संकल्प करने से कार्य की गति बढ़ जाती है और लक्ष प्राप्ति में कम समय लगता है|
14. जीवन में सफल होने के लिए टीन बातें कही गयी है-पुरुषार्थ, पूर्व कर्म और परमेश्वर की कृपा|
15. हमारी कथनी और करनी में अंतर नही होना चाहिए|
16. जो जीवन के दोषों को दूर करता है उसे ज्ञान कहते हैं|
17. अपने दुर्गुन भी अपने शत्रु होते हैं|
18. जहाँ भक्ति होती है वहाँ वासना नहीं होती|
19. बुराई स्वतः आती है अच्छे बने रहने के लिए प्रयास करना पड़ता है|
20. जब भी विचार प्रस्तुत करने का अवसर मिले हमे बोलना चाहिए ऐसा न कर, हो सकता है हम एक उत्तम विचार की हत्या कर दें|
21. जो समाज अपने भूतकाल से सबक न्ही लेता उसे अभिशप्त होना पड़ता है|
22. जो युवा अवस्था में तेजस्वी होता है वह बड़ा होकर महान बनता है|


सुभाषित
1. केतुम क्रिनव्न्न्केतवे पेशो मर्या अपेशसे समुष्दभीरजायते ||
अर्थ-  जो पुरुष अपने ही समान दूसरों को भी सुखी देखने की कामना रखते हैं,उनके पास रहने से विद्या प्राप्त होती है, अज्ञान का अंधकार दूर होता है, धन प्राप्त होता है और दरिद्रता का विनाश होता है| अतएव हम सब आटंदर्शी पुरुषों के समीप रहें|
2. धूलि धूसरितम बीजा वृक्षरूप्ेण वर्धते  | सरितसागर्तमेति गत्गर्वस्तथोच्च्ताम  ||
अर्थ- जैसे बीज मितकर वृक्ष बन जाता है, सरिता स्वयं को मिटाकर सागर बन जाती है, उसी प्रकार मनुष्य भी अहंकार का त्याग करके परम उच्च परमात्म को प्राप्त कर लेता है|
3. सर्वत्रानवधानस्य न किन्चिद्वासना ह्रिदि  |
   मकतात्मानो वितृप्तस्य तुलना केन जायते  || अष्तावक्र गीता
अर्थ- जिसकी कहीं कोई आसक्ति नही है, जिसके हृदय में कहीं कोई वासना नहीं है,जो भली भाँति संतुष्ट है, उसकी तुलना किससे की जा सकती है, किसी से नही वह अतुलनीय है|
4. उद्यमेन ना सिद्ध्यन्ति कार्याणी न मनोरथे:  | नही सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशांति मुखे मृगा  ||
अर्थ-  समस्त कार्य उधयम से ही पूर्ण होते हैं, कोवल मनोरथ से नहीं| सोते हुए सिंह के मुख में पशु अपने आप प्रवेश नहीं करते|
5. धर्मअर्थ च काम च मोक्षम च जराया पुनः  |
   शकतह साधियितुम तस्माद युवा धर्म समाचरेत्  ||
अर्थ- बुढ़ापे से आक्रांत होने पर मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनमे से किसी का भी साधन नहीं कर सकता. इसलिए युवावस्था में ही धर्म का आचरण कर लेना चाहिए.
6. कौमार अचिरत प्रागयौ धर्मान भागगावतनी  |
   दुर्लभं मनुषा जन्म तद्प्यध्रुवमर्थदम  ||
अर्थ-  इस संसार में माँव जन्म दुर्लभ है| इसमें परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है| पता नहीं इसका कब अंत हो जाए, इसलिए बुधीमान मनुष्य को बचपन में ही भागवत धर्मों का आचरण कर लेना चाहिए.
7. नजातु कामन्ना, भयन्ना, लोभाद, धर्म त्यजेज्जीवीतस्यापी हेतो:  |
   नित्यो धर्म: सुखेदुखे: त्वनित्य, जीवो नित्यो हेतुरस्यो त्वनित्य:  ||
अर्थ-  मनुष्य को किसी भी समय काम से,भय से, लोभ से या जीवन रक्षा के लिए भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए, क्योंकि धर्म नित्य है और सुख-दुख अनित्य है और जीवन का हेतु अनित्य है|
8. कामक्रोधौ तथा लोभं स्वादु शृंगार कौतुके  |
   अतिनिद्रा अतिसेवेच विद्यार्थी हृष्ट वर्जयते  ||
अर्थ-  विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि वह काम , क्रोध, तथा लोभ से और स्वादिष्ट पदार्थों के सेवन, शृंगार व हँसी-मज़ाक से डोर रहे| निद्रा और शरीर सेवा में अधिक ध्यान ना दे| इन आठों के त्याग से ही विद्यार्थी को विद्या प्राप्त हो सकती है|

मनुष्य को भक्तिमय जीवन व्यतीत करना चाहिए : पं. अतुल

इस्पात टाइम्स/रायगढ़। स्थानीय रामलीला मैदान में आयोजित राम कथा के कथा व्यास  अतुल कृष्ण जी भारद्वाज के आगमन पर राम कथा आयोजन समिति के अध्यक्ष सुनील रामदास एवं सदस्यों ने श्री भारद्वाज का चरण स्पर्श कर उनका स्वागत किया गया। उनके कथा व्यासपीठ पर आसीन होने के बाद राजेन्द्र अग्रवाल, रामकुमार देवांगन, डी. ईश्वर राव, जन्मजय, अशोक अग्रवाल, शोभा शर्मा, सुषमा अग्रवाल, सुनील रामदास, गोपाल अग्रवाल, आभा अग्रवाल, अंजु अग्रवाल, विकास निगानिया, बब्बल पाण्डेय, प्रवीण द्विवेदी, संजय अग्रवाल, देवेन्द्र पंताप सिंह, कविता अग्रवाल, अजय सिंघानिया, नंदकिशोर अग्रवाल, प्रचार प्रसार प्रमुख जिम्मी अग्रवाल, गुणवंत सिंह ठाकुर, मयंक गांधी ने माल्यार्पण कर अतुल कृष्ण जी भारद्वाज का मंच पर  चरण स्पर्श कर स्वागत किए। कथा प्रारंभ होने के पूर्व अध्यक्ष सुनील रामदास द्वारा रामचरित मानस एवं भगवान श्रीराम के चित्र पर माल्यर्पण कर पूजा अर्चना किए।  कथा प्रारंभ होने के पूर्व प्रो. अंम्बिका वर्मा ने कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज का संक्षिप्त परिचय कराते हुए बताया कि वे रसायन शास्त्र में एम.एस.सी. और देश के प्रतिष्ठित संस्थान से पत्रकारिता में एम.ए.किए है। यदि आप धर्म संबोधनो से जुड़े नही होते तो निश्चित रूप से प्रभु चावला और रजत शर्मा जैसे उदयीमान प्रत्रकार होते। लेकिन यह देश का सौभाग्य है। कि श्रीराम कथा जैसे दिग्गज विद्वान से पूरा समाज प्रेरित और लाभांन्वित है। कथा आरंभ के पूर्व प्रोफेसर अंम्बिका वर्मा ने महाराज जी का आत्मीय परिचय प्रस्तुत करते हुए कल की कथा के चुनिंन्दे अंशों की चर्चा की। अपनी प्रभावशाली शैली से श्री वर्मा ने पिछली कथा के मुख्य कथ्य का सौंदर्य उदघाटित किया।  अतुल कृष्ण भारद्वाज ने श्री राम जय राम जय-जय राम के भजन एवं संगीत से पूरा वातावरण को भक्तिमय कर दिया। श्रद्धालु श्रोतागण श्रीराम के सुमधुर भजन में लीन हो गये।  उन्होंने संत तुलसीदास जी के त्यागमयी जीवन पर प्रकाश डालते हुए   कहा कि वे खजरनाक नक्षत्र अभूक्त मूल नक्षत्र में पैदा हुए इस नक्षत्र में पैदा होने पर माता पिता एवं बंधु का नाश होता है इस डर से दनके पिता ने इन्हें शीघ्र जंगल में छोड़कर आने को कहा पर मां की ममता नही मानी उन्होने दासी से पालन पोषण करवाया एक वर्ष के भीतर दासी मर गई। मां-बाप भी मर गये अब तुलसी दास जी का आयु मात्र चार वर्ष का था । चार वर्ष का छोटा अबांध बच्चा कहां रहे क्या खाये ये समस्या उत्पन्न हो गई एक ऐसा समय आया कि तुलसी दास जी को अपना भुख को शांत करते के लिए कुत्तों के साथ पत्तल को चॉटना पड़ा एैसा समय भी उनके जीवन पर बिता है इसलिए सैसे महान संत को बारंबार प्रणाम है। नरहरि दास जी ने उन्हें संस्कार वान बनाया एवं गुरूमधुसून सरस्वती के पास कांशी विद्यार्जन के लिये भेजा त्रिदेव में ब्रम्हा भी अमर नही है और महादेव जी सबसे पुराने है। एवं उन्होंने कई बार सृष्टि को बनते बिगड़ते देया है।  श्री भारद्वाज जी ने कहा कि एक बार पार्वती जी शंकर जी से पूछी आप आदि देवता है अजर अमर है आप इस सृष्टि के सत्य बात को बताईये तब प्रभु शंकर जी ने कहा सत्य हरि भजन है वही जीवन का सार है बाकि दुनिया मिथ्या है। गोस्वामी जी एक-एक चौपाई महा मणी मंत्र है जो हमारे मांथे पर लिखे हुए कुअंक को भी मिटा सकता है। मीरा बाई कलयुग की सबसे बड़ी भक्त हुई वो भक्ति में लीन होकर पत्थर में समा गई उन्हें संत रविदास जी ने राम मंत्र दिया था। हमारे देश में अनेक विभिन्नता होते हुए भी कई परंपरा एक समान है। हमारी संस्कृति एक जैसा है। चीता एक जैसा है। ज्ञान एक जैसा है पंरपरा का विकास एक समान होता है। दो हजार पांच सौ साल पहले आदिशंकराचार्य ने सनातन धर्म का प्रचार किया था। 

रामकथा आंदोलन : अतुल कृष्ण

अयोध्या, श्रीराम कथा अंतरराष्ट्रीय आंदोलन है जिससे पूरे विश्व की तस्वीर बदल रही है। विश्व के एक करोड़ अंग्रेज हिंदू धर्म को स्वीकार कर उसकी मान्यताओं में जी रहे हैं। यह विचार वृंदावन के प्रसिद्ध कथावाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कही। वह रविवार को कारसेवकपुरम में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध अभिनेत्री जूलिया राबर्ट व जुरासिक पार्क फिल्म के निर्देशक स्टीफन आदि हिंदू धर्म को आत्मसात कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि बुद्धिमान अंग्रेज हिंदुत्व को अपना रहे हैं जबकि उनके देश के लोग भारत के आदिवासियों व वनवासियों के रूप में अशिक्षित लोगों को बरगला कर इसाई धर्म से जोड़ रहे हैं। भगवान राम ने शांति की स्थापना के लिए रावण जैसे समृद्ध योद्धा से शून्य बजट में लड़ाई जीत ली। गोस्वामी तुलसीदास ने जी उनकी लीलाओं में आधारित रामचरितमानस की रचना कर देश को विदेशी संस्कृति से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्रीराम से जुड़ना भारत की राष्ट्रीयता से जुड़ना है और उनका विरोध भारत उसकी संस्कृति का द्रोह है। उन्होंने कहा कि विज्ञान की प्रगति ने पूरी दुनिया को अशांत कर दिया है। घरेलू गैस की आंच पर सीधे सेंकी गई रोटी ब्यूटेन गैस के प्रभाव के कारण जहरीली हो जाती है। उन्होंने कहा कि रामनाम की माला जपने से ही नहीं धर्म की स्थापना से देश का कल्याण होगा। उन्होंने कहा कि अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण हुआ तो इसका कायाकल्प स्वत: हो जाएगा।

भक्ति के बिना जीवन व्यर्थ : अतुल कृष्ण


मुरादाबाद : मानस मर्मज्ञ अतुल कृष्ण भारद्वाज ने रामकथा की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि भक्ति के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।
बुधवार को रामकथा के चौथे दिन उन्होंने महर्षि दयानंद कालोनी पीतल बस्ती पार्क में रामकथा में प्रभु श्रीराम की बाल लीलाओं को संगीतमय वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भगवान मनुष्य के मन के अंदर निवास करते हैं लेकिन वह उन्हें तीर्थ स्थानों और मंदिरों में तलाश करता है। कहा कि जिस प्रकार कस्तूरी मृग की नाभि में होती है लेकिन वह उसकी तलाश में जंगल में भटकता रहता है। उसी प्रकार मनुष्य भी भगवान को अपने अंदर नहीं तलाशता। कहा कि गुरु भगवान तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा रूपी राम में भक्ति रूपी सीता नहीं है तो जीवन का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने जीवन को यज्ञ की भांति बताते हुए कहा कि इसमें मनुष्य अपने कर्मो की पूर्णाहुति देता है। मानस मर्मज्ञ ने कहा कि मानव जीवन पाने के बाद भक्ति मिल जाए तो यही जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। मनुष्य कितना भी योग्य क्यों न हो एक निश्चित समय के बाद उसकी काम करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। उन्होंने भजनों से भाव विभोर भी किया। व्यवस्था में रामकथा आयोजन समिति के अध्यक्ष रामकृपाल गुप्ता, देवेश वशिष्ठ, श्याम कृष्ण रस्तोगी, विलकेश शर्मा, नीरज त्रिपाठी, दिनेश शर्मा, निशांक शर्मा, राजकुमार, वीरेंद्र शर्मा, पंकज त्रिपाठी, पुनीत गुप्ता, महेश शर्मा, श्याम ठाकुर, प्रीतम सिंह, कन्हई सिंह यादव, कृष्ण कुमार यादव आदि ने सहयोग किया। उधर रामकथा प्रसार मंच की ओर से कुंदनपुर लाइनपार में आयोजित रामकथा महोत्सव के दूसरे दिन कथा वाचक अभय कांत त्रिवेदी ने रामकथा का महत्व बताते हुए जीवन की सफलता के लिए इसकी शिक्षाओं पर अमल करने की जरूरत बताई। चार वर्षीय बाल व्यास श्रीराम भारद्वाज ने भजनों से भाव विभोर किया।

मनुष्य के नजरिए को बदलना ही धर्म है: अतुल कृष्ण


मनुष्य के नजरिए को बदलना ही धर्म है: अतुल कृष्ण


बेगूसराय कार्यालय: मनुष्य के नजरिए को बदलना ही धर्म है। जिन साधु-संतों के आचरण में धर्म के तत्व मौजूद है, उनके वाणी-विचार का प्रभाव देश-समाज पर निश्चित रुप से पड़ता है। शंकराचार्य, कबीर, रहीम, चैतन्य महाप्रभु आदि इसके उदाहरण हैं। चैतन्य ने कहा है- 'करतल भीक्षा, तरु तल वासा, दिने, दिने नवम नवान्नी।' उक्त बातें प्रसिद्ध कथावाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने रविवार की दोपहर स्थानीय भारद्वाज गुरुकुल में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कही। कहा- रावण भी ऋषि पुत्र थे। विद्वान थे। परंतु, उनके आचरण में धर्म मौजूद नहीं था, इसलिए 'राक्षस' कहलाए। उनके पुतले फूंके जाते हैं। बोले, संपत्ति-संस्कार एक दूसरे के विरोधी है। आदि शंकराचार्य मात्र 32 वर्ष की उम्र में स्वर्ग सिधार गए। परंतु, उनका प्रभाव सदियों बाद भी जनमानस पर अक्षुण्ण है। प्रसिद्ध कथावाचक श्री भारद्वाज ने कहा कि, मिथिला तो जगत जननी मां सीता की जन्मभूमि है। इस मिट्टी की अपनी विशेषता है। यहां से मेरा लगाव है। बोले, जो अपने आत्मा के प्रतिकूल है, वह दूसरे के साथ नहीं करना चाहिए। पेड़ों में भी जीवन है। वे भी हंसते गाते हैं। मैं तो संवेदना जगाने का काम कर रहा हूं। भगवान हमेशा सेवक से प्रेम करते हैं। इस अवसर पर प्रख्यात चिकित्सक डा. विद्यापति राय, भारद्वाज गुरुकुल के शिव प्रकाश भारद्वाज आदि मौजूद थे।