बेगूसराय कार्यालय: मनुष्य के नजरिए को बदलना ही धर्म है। जिन साधु-संतों के आचरण में धर्म के तत्व मौजूद है, उनके वाणी-विचार का प्रभाव देश-समाज पर निश्चित रुप से पड़ता है। शंकराचार्य, कबीर, रहीम, चैतन्य महाप्रभु आदि इसके उदाहरण हैं। चैतन्य ने कहा है- 'करतल भीक्षा, तरु तल वासा, दिने, दिने नवम नवान्नी।' उक्त बातें प्रसिद्ध कथावाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने रविवार की दोपहर स्थानीय भारद्वाज गुरुकुल में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कही। कहा- रावण भी ऋषि पुत्र थे। विद्वान थे। परंतु, उनके आचरण में धर्म मौजूद नहीं था, इसलिए 'राक्षस' कहलाए। उनके पुतले फूंके जाते हैं। बोले, संपत्ति-संस्कार एक दूसरे के विरोधी है। आदि शंकराचार्य मात्र 32 वर्ष की उम्र में स्वर्ग सिधार गए। परंतु, उनका प्रभाव सदियों बाद भी जनमानस पर अक्षुण्ण है। प्रसिद्ध कथावाचक श्री भारद्वाज ने कहा कि, मिथिला तो जगत जननी मां सीता की जन्मभूमि है। इस मिट्टी की अपनी विशेषता है। यहां से मेरा लगाव है। बोले, जो अपने आत्मा के प्रतिकूल है, वह दूसरे के साथ नहीं करना चाहिए। पेड़ों में भी जीवन है। वे भी हंसते गाते हैं। मैं तो संवेदना जगाने का काम कर रहा हूं। भगवान हमेशा सेवक से प्रेम करते हैं। इस अवसर पर प्रख्यात चिकित्सक डा. विद्यापति राय, भारद्वाज गुरुकुल के शिव प्रकाश भारद्वाज आदि मौजूद थे।
No comments:
Post a Comment