Thursday 28 June 2012

84 लाख योनियों में श्रेष्ठ है गौमाता : अतुल महाराज

पुराना मंडी परिसर में आयोजित श्रीराम कथा का रविवार को समापन हुआ। अंतिम दिन सुबह से ही चित्रकूट धाम में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। पंडाल में प्रवेश करते ही गौमाता की सुंदर प्रतिमा सजी थी।
सुबह दस बजे कथा प्रारंभ हुई। संत अतुल कृष्ण भारद्वाज ने गौवंश की महिमा का बखान करते हुए कहा कि चौरासी लाख योनियों में गौमाता श्रेष्ठ है और इनकी सेवा से ही जीवन को सफलता मिलेगी। केवल गाय को ही पूजनीय माना गया है, क्योंकि गौ में पूरा ब्रम्हांड समाया हुआ है। 84 लाख योनियां गौमाता में समाहित है। गौ के मूत्र से लेकर सब कुछ उपयोगी है। आज आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पुरातन संस्कृति को पीछे छोड़ पाश्चात्य के पीछे दौड़ रहे हैं। आज घरों में हालात यह है कि कुत्ता पालने के लिए जगह है, लेकिन गाय के लिए नहीं। संतश्री ने कहा कि वात्सल्य शब्द ही बछड़े से बना है। जब हमें अपने बच्चे पर अत्यधिक प्रेम उमड़ता है, तब हमारे मुंह से वात्सल्य के रूप में अनायास यह शब्द निकल पड़ता हैं। अत्यधिक प्रेम में डूबे मां बच्चे को गोद में लेते हुए कहती है आ जाओ मेरे बछड़े, मेरे लाड़ले। उन्होंने कहा कि वात्सल्य का सही रुप अगर देखना है तो गौमाता को अपने बछड़े से दुलार करते देखे। इसी तरह का प्रेम कौशिल्या और भरत के बीच देखने को मिला। जब कैकैई माता ने राम को 14 वर्ष का वनवास देकर भरत को राजगद्दी में बिठाना चाहा, तब भरत व्याकुल हो गए। व्याकुल गद्दी मिलने को लेकर नहीं, बल्कि राम से दूर होने को लेकर था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम से छोटे भाई भरत किसी भी कीमत पर राम से दूर रह नहीं सकता था, अत: स्वार्थी मां कैकई का त्याग कर दौड़े दौड़े कौशिल्या के पास आई। कौशिल्या माता को रो-रोकर कहने लगा, माता मुझे राजगद्दी नहीं चाहिए। बड़े भैय्या राम को वनवास भेजने के षडयंत्र में मेरा कोई सहभागी नहीं है। बार-बार स्पष्टीकरण देते रहे कि मुझे राजगद्दी नहीं, बल्कि भैय्या राम प्यारा है। भरत कैकैई के पुत्र होने के बाद भी कौशिल्या को ही मानता था। कैकैई की कुटिल चाल से राम को वनवास तो हो गया, लेकिन भरत कभी भी गद्दी पर नहीं बैठा। राज काज चलाने के लिए उसने बड़े भैय्या राम का चरण पादुका सिंहासन में रखा और उसके बाजू में बैठकर पूरे चौदह बरस तक अयोध्यावासियों की सेवा की। भरत और कौशिल्या माता का अगाध प्रेम गौमाता की ही तरह थी।
कथा के बाद महाआरती हुई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। प्रसादी वितरण के साथ श्रीराम कथा का समापन हुआ। अंतिम दिन कथा सुनने के लिए आसपास गांवों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। इस अवसर पर आयोजन समिति के अध्यक्ष डा. प्रभात गुप्ता, प्रकाश गांधी, दीपक चोपड़ा, दिलीपराज सोनी, सुबोध राठी, सुरेश गुप्ता, विष्णु प्रसाद हिरवानी, गिरधारी लाल अग्रवाल, विनोद जैन, जानकी प्रसाद शर्मा, शरद फौजदार, प्रीतेश गांधी, शिवओम बैगा नाग उपस्थित थे।

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