कथा सार


पूज्य स्वामी अतुल कृष्ण भारद्वाज महाराज की कथा का  सार

प्रथम दिवस 

श्री सूत जी महाराज से सनकादिक ऋषियों ने पूछा कि वेदों और उपनिषदों की कथा क्यों नहीं होती | श्री सूत जी महाराज ने उन्हें उत्तर दिया कि बेद और उपनिषद् सनातन धर्म नामक वृक्ष की जड़ें हैं और श्रीमद् भागवत उस वृक्ष का फल है | अब चूँकि खाने के लिए वृक्ष का फल होता है इसलिए कथा श्रीमद् भागवत की होती है वेदों और उपनिषदों की नहीं | फिर जिस फल को तोते ने जूठा किया हो उसकी मिठास का क्या कहना | ध्यान रहे श्रीमद् भागवत की कथा को महाराज सुकदेव जी ने राजा परीक्षित को अपने मुखार्विन्द से सुनाया था |

लोग कहते हैं भगवान तो सवत्र हैं इसलिए मंदिर और तीर्थों को जाने से क्या लाभ ? हवा तो सभी जगह है फिर लोगों को पंखे चलाने की क्यो आवश्कता पड़ती है | जहाँ भगवत कथा हो रही हो वहाँ परमात्मा के सानिध्य का आनंद ही कुछ और होता है |

श्रीमद् भागवत की कथा प्रारंभ में तीन अलग-अलग क्षेत्रों में हुईं | महाराज सुकदेव जी ने कथा को राजा परीक्षित को सुनाया | दोनो ही भगवान के परम भक्त थे इसलिए यह कथा भक्ति के क्षेत्र में हुई | इसी कथा को महाराज सूत जी ने सनकादिक ऋषियों को सुनाया | ये सभी परम ज्ञानी थे इसलिए यह कथा ज्ञान के क्षेत्र में हुई | इसी कथा को मैत्र्य ऋषि ने बिदुर को सुनाया | दोनो ही महान कर्म योगी थे इसलिए यह कथा कर्म के क्षेत्र में हुई | अतः श्रीमद् भागवत में तीनों भक्ति, ज्ञान और कर्म का समावेश है |

भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा जब वे अपनी माँ उत्तरा के गर्भ में थे तब की थी अर्थात जो परमात्मा माँ के गर्भ में आपकी रक्षा कर सकता है वह आपकी कहीं भी रक्षा कर सकता है | मात्र आपको उसे याद करने की आवश्यकता है | जिस तरह लकड़ी पर लकड़ी रगड़ने से या पत्थर पर पत्थर पटकने से अग्नि पैदा होती है उसी तरह परमेश्वर को सतत याद करने से परमेश्वर कहीं भी प्रकट हो सकता है | एक बार प्रभु राम जी ने हनुमान जी से पूछा हे हनुमान, दुनिया की सबसे बड़ी विपत्ति कौन सी है | उत्तर में हनुमान जी ने कहा जब आपका सुमिरन भूल जाए |

माँ सरस्वती ज्ञान की देवी हैं | इसीलिए महाराज व्यास जी ने श्रीमद् भागवत की रचना बद्रिकाश्रम में सरस्वती नदी के तट पर की थी | माँ सरस्वती जी का वाहन हंस है | स्पष्ट है कि जिस तरह हंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है उसी तरह ज्ञान दोषों के मध्य से गुणों को ग्रहण करने की युक्ति प्रदान करता है | श्रीमद् भागवत वह कथा है जिसकी रचना माँ सरस्वती की कृपा से हुई थी | इसलिए इसके श्रवण से ज्ञान प्राप्त होता है जो मनुष्य को अंदर से पवित्र कर देता है |

महाराज गोकरण ने जब भागवत कथा कहा तब कथा तो सभी सुन रहे थे लेकिन अंतिम दिन भगवान का विमान धुंधकारी को ही स्वर्ग ले जाने के लिए आया | ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि धुंधकारी तीन घंटे कथा सुनता था और बाकी समय उसका चिंतन करता था और अपने को दीन मानकर अपने गुरु पर भरोसा कर रहा था |

दूसरा दिवस 

जब महाभारत का युद्ध हुआ था उस समय भगवान श्रीकृष्ण की उम्र 88 वर्ष की थी, भीष्म पितामह 150 वर्ष के थे, गुरु द्रोण की आयु 144 वर्ष की थी और अर्जुन तब केवल 66 वर्ष के थे | इतनी उम्र होते हुए भी भीष्म और द्रोण में अपरिमित क्षमता थी क्योंकि उन्होने अपना जीवन सयम से जिया था और भगवान के अनन्य भक्त होने की वजह से उनमें कभी मानसिक तनाव नहीं आया | आज लोगों में योग का त्याग और भोग से प्रेम की वजह से उन्हें तनावग्रस्त जिंदगी और विभिन्न रोगों से जूझना पड़ रहा है |

कुंती को देखिए | महाभारत युद्ध के बाद एक बार भगवान कृष्ण ने कहा, बुआ, आज तुझे जो माँगना हो माँग ले | कुंती ने माँगा कि मेरे जीवन में कभी विपत्तियों का अंत न हो | कृष्ण आश्चर्य में पड़ गये | बोले, बुआ, तू ये क्या माँग रही है ! तेरा सारा जीवन विपत्तियों में ही बीत गया | अभी उससे जी नहीं भरा है ? कुंती ने कहा ये विपत्तियाँ ही हैं जिनकी वजह से मैं आपको विस्मृत न कर सकी और सारा जीवन आपके दर्शन होते रहे |

पितामह भीष्म 52 दिनों तक सरसैया पर लेटे रहे और प्रत्येक दिन ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक चर्चा करने उनके पास महर्षि आते रहे | अंतिम दिन जब उन्हें प्राण त्यागना था तब पूरे पांडव परिवार को साथ लेकर भगवान कृष्ण उनसे मिलने गये | भगवान ने पितामह से कहा उनकी जो इच्छा हो वैसा बरदान वह माँग सकते हैं | पितामह ने कहा हे प्रभु, आप स्वयं मेरी पुत्री का वरण कर लो | भगवान आश्चर्य में पड़ गये | आपकी एक पुत्री ? पितामह बोले हाँ, मेरी बुद्धि मेरी पुत्री है जो अभी तक विशुद्ध क्वारी है | हे प्रभु, आपके वरण के पश्चात वह सुहागिन हो जाएगी | पितामह भीष्म के जीवन में सयम और पुरुषार्थ की यह सीमा थी कि उन्होने स्वार्थ बस कभी बुद्धि का प्रयोग नहीं किया | अतः ऐसा संयमित जीवन जो भी जीता है अंत समय में परमात्मा उसके पास खड़े होते हैं |

एक अर्ज़ मेरी सुन लो दिलदार हे कन्हैया, कर दो अधम की नैया भव पार हे कन्हैया …

भगवान श्रीकृष्ण 97 वर्ष गुजरात में रहे |युद्ध के पश्चात वे द्वारिका लौट गये | उन्होने अपने ही वंश को सत्ता सुख में मदमस्त, अनचार और अत्याचार करते हुए देखा | परिणामस्वरूप, उन्होने स्वयं ही यदुवंशियों का विनाश कर दिया | और इस तरह अधर्म का नाश करके 125वीं वर्ष की उम्र में स्वर्ग सिधार गये |

भगवान के स्वरगवास की खबर सुनकर हस्तिनापुर में कुंती ने तो तुरंत प्राण त्याग दिए | युधिस्टिर ने भी अपने 37 वर्षीय पौत्र परीक्षित का राज तिलक किया और सभी भाइयों के साथ हिमालय चले गये | परीक्षित बहुत धर्मपारायण राजा हुए | अपने को चक्रवर्ती सम्राट सिद्ध करने के लिए उन्होने पुनः विश्वविजय किया | एक दिन उन्होने देखा कि एक काला कुरूप व्यक्ति एक गाय और एक बैल को बड़ी निर्ममता से पीट रहा है | राजा प्रीक्षित ने जब उसका बध करना चाहा तब वह बोला मैं कलियुग हूँ |और उसने प्रार्थना की हे महाराज, मेरा बध मत करो – मुझे जहाँ आपका आदेश होगा मैं वहीं निवास करूँगा और मेरे प्रभाव से केवल भगवान का नाम जप कर लोग भवसागर के पार उतार सकेंगे, साथ में चिंतन में हुए अपराध क्षम्य होंगे | राजा ने उसे कहा तुम जुए में, मदिरा में, व्यभिचार में और हिंसा में ही रहोगे | तुम्हारे लिए अन्य कोई स्थान नहीं होगा | इस पर उसने एक अच्छी जगह का आग्रह किया | तब राजा ने कहा ठीक है तुम सोने में भी रह सकते हो, बस |

आज कलियुग का प्रभाव देखो देश के मूर्खों ने सारे जल को ज़हरीला कर दिया, वायु को प्रदूषित कर दिया | भौतिक सुख के चक्कर में सारी प्रकृति को ही छेड़ दिया है | अब क्या किसी को जीवन का मौलिक स्वाद मिल सक रहा है ?

अब माताएँ, बहने चप्पल पहनकर रसोई कार्य करती हैं | अरे भाई, कमपूटर रूम या आईसीयू में जब आप चप्पल उतार कर जाते हो तो रसोई में तो जो कुछ है वह सब आपके खाने की वस्तुएँ हैं, उनमें तुम्हें क्यों आधुनिकता की याद आती है ?

जिस देश की जनता में भ्रष्टाचार होता है निश्चित रूप से उस देश का राजा भ्रष्टाचारी होता है | कलियुग का प्रभाव है भ्रष्टाचार हमारे रक्त के प्रत्येक अणु में समा गया है | सुख कहाँ संभव है ? लेकिन कलियुग का एक उत्तम प्रभाव है जिसको गोस्वामी जी ने लिखा है :

“कलि कर एक पुनीत प्रतापा, मानस पुण्य होय नहीं तापा “|अर्थात रामचरित मानस के मात्र पाठ से, श्रीमद् भागवत कथा के मात्र श्रवण से कलियुग में दैविक, दैहिक और भौतिक ताप से बचा जा सकता है |

श्रीमद् भागवत कथा मोक्ष का गारेंटेड साधन है | जब महाराज परीक्षित को सात दिनों में ही मोक्ष के उपाय की आवश्कता पड़ी तो महाराज सुकदेव जी ने उन्हें श्रीमद् भागवत कथा को ही उन्हें सुझाया और पूरे धर्म के साथ उसके श्रवण के पश्चात वे स्वर्ग के विमान से विष्णु लोक चले गये |

“नैया लगा दो भव पार पार मेरे सदगुरु, नैया लगा दो भव पार | संग के साथी पार उतार गये, संत जना तो पार उतार गये, मैं ही रही मझधार, मेरे सदगुरु..”

भगवान की सेवा में जै और विजय ने अपने अपमान की कभी चिंता नहीं की | चारों कुमारों द्वारा घोर राक्षस होने के श्राप से होने वाले अपमान को स्वीकार किया | इसी प्रकार हनुमान जी महाराज ने कभी यह प्रदर्शित नहीं होने दिया कि उन्होने भगवान के लिए बड़े-बड़े कार्य किए हैं | इसीलिए भगवान के ये सबसे प्रिय सेवक हैं |गोस्वामी जी कहते है – राम जासू जस आप बखाना | महावीर विक्रम भगवाना ||

कर्दम ऋषि ब्रह्मा की छाया से उत्पन्न हुए थे | घोर तपस्या के पश्चात जब भगवान उन पर प्रसन्न हुए तब उन्होने उनसे बर मागने को कहा | कर्दम ऋषि ने शादी के लिए आग्रह किया | भगवान ने कहा कि ठीक है पृथ्वी के प्रथम पुरुष महाराज मनु की दूसरी पुत्री देहुति बहुत ही गुणवान है |वे पिता पुत्री शीघ्र ही आपके पास पहुँच रहे हैं | उनसे न मत करना | कर्दम ऋषि और दहूति ने कामद विमान से 100 वर्षों तक विहार किया और उस दौरान उनके 9 पुत्रियाँ पैदा हुईं | अंत में देहुति से भगवान का अवतार हुआ | उनका नाम करण करने स्वयं ब्रह्मा जी अपने 9 पुत्रो से पधारे | कपिल के नाम से भगवान का नामकरण हुआ और उसी समय कर्दम ऋषि के उन 9 पुत्रियों का विवाह ब्रह्माजी के 9 पुत्रों से हुई | कर्दम ऋषि जिनके पुत्र स्वयं भगवान थे इतने से संतुष्ट नहीं हुए | उन्होने भगवान से पुनः तपस्या की इक्षा की और आग्रह किया कि वे इस तपस्या .को इसलिए करना चाहते हैं ताकि वे हर चीज़ में ईश्वर के दर्शन कर सकें |

एक पंत सारी दुनिया में ऊपर से एक जैसा दिखता है | उसके अनुयायी एक पुस्तक को ही ग्रंथ मानते हैं और उसका रचयिता भी एक महापुरुष होता है | वे केवल एक देवता की उपासना करते हैं | सभी जगह उपासना की पद्ध्यति भी एक होती है | और वह सारे अन्य पंथों से बिल्कुल भिन्न होता है | धर्म उपर से वह भिन्न भिन्न हो सकता है लेकिन अंदर से उसमें पूर्ण समानता होती है | ब्रह्मांड की हर वस्तु में उसका अनुयायी ईश्वर के दर्शन करता है | भिन्न-भिन्न ग्रंथ, भिन्न-भिन्न देवी देवताओं, महापुरुषों, पद्धयतियों के बावजूद उसमें कहीं कोई विषमता नहीं होती | और धर्म का नारा होता है “प्राणियों में सदभावना हो विश्व का कल्याण हो |

“है प्रीति जहाँ की रीति सदा मैं गीत वहीं के गाता हूँ| भारत का रहने वाला हू भारत की बात सुनाता हूँ..…”

हमारे संत नामदेव की रोटी जब कुत्ता लेकर भागा तब नामदेव जी घी की कटोरी लेकर उसके पीछे इसलिए दौड़ पड़े कि वह सुखी रोटी खाएगा कैसे | उनकी माँ ने जब पेड़ की छाल लाने को कहा तब उन्होने अपने जाँघ की खाल उधाड़नी शुरू कर दी | यह महसूस करने के लिए कि पेड़ की छाल निकालने पर पेंड को कितना कष्ट होगा | संत मन को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं | संतों की संगत से मनुष्य को मोक्ष तक प्राप्त होते है और खल की संगत से घोर नरक | इसलिए महाराज तुलसीदास जी कहते हैं : “तात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला एक संग | तूल न ताहि सकल मिलि जौ तौ लौ सत्संग |”

हमारे धर्म में जहाँ संत सूरदास या संत तुलसीदास पैदा हुए हैं वही संत धन्ना, संत रविदास, संत मलूका, संत कबीर, संत सदन कसाई, भी हुए | कौन सी ऐसी जाति है जिसमें संत नहीं हुए हैं | हमारा तो प्रजातांत्रिक धर्म है | इसमें सबको समान अधिकार प्राप्त है और सभी अपने विचारों के लिए स्वतंत्र हैं | फिर भी हमारे सभी संतो की आत्मा को निहारने पर सबके सब में एक स्वाभाव, एक प्रकृति सबकुछ समान दिखेगा |

जिसके संपर्क में आने से आपको लगने लगे कि आपमें सद्गुणों की बृद्धि हो रही है वह निश्चित ही संत है और जिसके संपर्क से आपको लग रहा हो कि आपमें दुर्गुणों का विकास हो रहा है तो जानिए आप किसी असन्त के संगत में हैं | जो स्वयं कष्ट सहकर आपको सुख दे रहा हो वह साधु है |

“सन्तन के संग लाग रे तेरी अच्छी बनेगी, खुल जाएँगे तेरे भाग्य रे तेरी अच्छी बनेगी…”

किसान अन्न दाता नहीं जीवन दाता है | उस पर कोई संकट आए तो समझो पूरे देश पर पहाड़ टूट पड़ा है | अतः पूरे देश का दायित्व है कि सब किसानों पर आई आपदा को बाँट लें और उन्हें हर संभव सहयोग दें | किसान केवल खेती ही न करें | पशु पालन, वृक्ष लगाकर फलों की कृषि, कुछ लघु उद्योग इत्यादि साथ-साथ करें तो उत्पादन संतुलित रहेगा |

भगवान भोले नाथ ऐसे देव है जो अपमान का विष पीकर भी पसन्न् रह सकते हैं | चलत कुंडलम भ्रू सुनेत्रम विशालम, प्रसन्नाननम नीलकंठम दयालम |

चतुर्थ दिवस 
“नटवर नागर नंदा भजो रे मन गोविंदा | उंगली ते गिरिराज उठायो इन्द्र के गर्व को चूर करायो |श्याम सुन्दर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा | ध्रुव तारे प्रहलाद उबारे नरसिंह रूप धरिन्दा | भजो रे मन गोविंदा …“

महाराजा परीक्षित ने भगवान के अनन्य भक्त सुकदेव जी महाराज से प्रश्न किया, हे गुरु देव, दुनिया में सबसे बड़ी पीड़ा कौन सी है |सुकदेव जी महाराज कहते हैं कि हे राजन, दुनियाँ में जन्म और मृत्यु दो सबसे बड़ी पीड़ा हैं | माँ की पीड़ा हम जान सकते हैं लेकिन बच्चे को उससे सैकड़ों गुना पीड़ा होती है उसे हम नहीं जान पाते | मृत्यु की पीड़ा उससे भी कहीं ज़्यादा होती है | परंतु जो अपना जीवन भगवान को समर्पित कर देते हैं वे पीड़ा से मुक्त हो जाते हैं | “काटो जनम के फँदा भजो रे मन गोविंदा ….”

महाराज सुकदेव जी ने फिर 27 मुख्य नर्क और 15 उपनर्क की व्याख्या की और कहा भगवान ने इन नर्कों को इसलिए बनाया कि जैसे धोबी मैली चादर को पीट-पीट कर सॉफ कर देता है वैसे ही नर्क के जमदूत दूषित आत्माओं को उत्पीड़न की विभिन्न प्रक्रियाओं से स्वक्ष कर देते हैं |

भारत दुनिया की सबसे पवित्र भूमि है क्योंकि जो उत्सव स्वर्ग में नहीं होते वे यहाँ होते हैं | भगवान की भक्ति का दुनिया में इतना अनुकूल वातावरण नहीं है जितना अनुकूल भारत में है | दुनिया के एक करोड़ अंग्रेज भगवान के भक्त हो गये हैं | जुरासिक पार्क पिक्चर बनाने वाला आज भगवान का भक्त है | जूलिया राबर्ट्स 4 साल पहले दीक्षा ले चुकी है | फ़ोर्ड जो दुनिया का मसहूर मोटर निर्माता है वह पिछले 3 पीढ़ियों से भगवान का भक्त है और कार्तिक भर बृंदावन में निवास करता है | सनातन दुनिया के बड़े-बड़े लोगों को स्वाभाविक ढंग से आकर्षित कर लेता है | लंदन में 5 हज़ार सिनेमाघर हैं लेकिन वे सभी वहाँ के लोगों के तनाव को दूर नहीं कर पाते | बृंदावन में 5 हज़ार मंदिर हैं वे उनके तनाव का पूरा उपचार कर देते हैं |

कुछ लोग पैसा खर्च करके पाप कमाते हैं और कुछ पुण्य | धर्म यह नहीं कहता कि आप धन न कमाएं – आप सहस्त्र हाथों से कमाइए लेकिन उसे खर्च करके परमार्थ कीजिए | जूनागढ़ के राजा ने अपनी कुतिया की शादी में 36 लाख रुपये खर्च किए थे वहीं विरला जी ने 1916 में अपने गुरु पंडित मदन मोहन मालवीय को 1 लाख रुपये वनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिए दान किए थे | एक ने अहंकार प्रदर्शन में खर्च किए और दूसरे ने लोक कल्याण में | परिणाम स्पष्ट है, आज विरला जी को देखिए जबकि जूनागढ़ का राज्य नष्ट हो गया | महाराज जी ने कहा महादेवी लक्ष्मी के बड़े भाई का नाम है विष और छोटी बहन का नाम है मदिरा | जैसा कि समुद्र मंथन से तीनों क्रमशः प्रकट हुए थे | कहने का आशय है केवल धन के निकट विष और मदिरा के पहुचने की पूरी संभावना होती है परंतु अगर धन मानवता जो भगवान का प्रतीक है में लगाया जाय तो विष और मदिरा पास नहीं फटक सकते | लक्ष्मी जी के दो वाहन हैं उल्लू और गरूण | जब महादेवी लक्ष्मी जी अकेली चलती हैं तब उनका वाहन उल्लू होता है लेकिन जब वे भगवान के साथ चलती हैं तब उनका वाहन गरूण होता है | तात्पर्य यह है कि भगवत भजन के बगैर आपका धन पाप में खर्च होता है और भगवत भजन के साथ आपका धन आपके निकट विष नहीं आने देता | संपत्ति लंका में थी और संपत्ति अयोध्या में भी |

इंद्र ने गुरु बृहस्पति का अपमान किया परिणाम स्वरूप ब्रित्तासुर ने देवताओं की अन्य रक्षासों की तुलना में सबसे अधिक पिटाई की | अंत जब महाराज दधीचि की हड्डियों से बने बज्र से ब्रित्तासुर का बध होने को हुआ तो भगवान ने उससे बरदान माँगने को कहा | ब्रित्तासुर ने कहा हे प्रभु, मुझे आपके दास के चरणों की सेवा का अवसर प्रदान करो क्योंकि अगर मेरा सानिध्य संतों से हुआ होता तो मैं राक्षस क्दापि न बनता |

“नंदलाला प्रकट भयो आज, ब्रिज में लेंड्वा बटे, कौन पुण्य कौशिल्या ने कीनो कौन पुण्य देवकी ने कीनो, गोद में झूलें भगवान ब्रिज में लेडवा बटे …”

पंचम दिवस 
“यशोदा हरि पालने झुलावे, हलरावे मल्लावे जोई सोई कछु गावे…”

बात्सल्य उपासना के जनक भगवान भोले नाथ हैं | भगवान के बात्सल्य रूप की उपासना में मर्यादाओं का पालन आवश्यक नहीं होता जबकि भगवान के बड़े रूप की उपासना में मर्यादाओं का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है |

6 महीने की उम्र में बालक कृष्ण ने सक्तासुर का बध किया | इसके पश्चात उन्होने त्रिनावर्त का बध किया और इस तरह एक वर्ष की उम्र होते-होते पूतना सहित उन्होने अपने मामा के भेजे हुए तीन महा राक्षस/ राक्षसियों का बध कर डाला | त्रिनावर्त बवंडर के रूप में बालक भगवान को मैया यशोदा की गोद से उठा ले गया था | उसका बध करके उन्होने वायुमंडल के प्रदूषण को समाप्त किया था | कालिया नाग को मार कर उन्होने पृथ्वी पर जल को शुद्ध किया | सक्तासुर ज़मीन के अंदर छिपे विषाक्त रसायन का प्रतीक है | उन्होने उसको भी समाप्त किया | इस तरह उन्होने धरती पर धर्मस्थापना की नीव डालने की शुरूवात की |

पूर्व जन्मों का पुण्य है जिसकी वजह से लोग भागवत कथा का श्रवण करते हैं नहीं तो बहुत से ऐसे हैं जिनकी सोच में ही नहीं आता क़ि अवसर पाकर उन्हें मोक्ष दायनी श्रीमद् भागवत कथा को सुनना चाहिए |

माँ यशोदा ने कृष्ण को 5 वर्षों तक स्तन पान कराया और सुरभि गाय का मक्खन खिलाया जिससे कृष्ण का शरीर बज्र का हो गया और माँ के प्रति प्रेम जीवन पर्यंत बढ़ता ही रहा | आज की माताएँ अपने बच्चों को बोतल से दूध पिलाती हैं | वही बच्चे आगे कोल ड्रिंक की बोतल पीने लगते है फिर उनकी आदत ड्रिंक की बोतल की पड़ जाती है और अंत में ग्लूकोज के बोतल की आवश्यकता पड़ जाती है |

स्वस्थ रहने के लिए माताएँ योग सीखती हैं जिसमें हवा में चक्की चलाने की क्रिया को दोहराने को कहा जाता है | अब अगर माताएँ घर में थोडा-थोडा सही की चक्की चलाना शुरू करें तो उन्हें शुद्ध मीठा आटा भी मिलेगा और दीर्घायु तो होंगी ही |

एक बार ब्रह्मा जी को संदेह हुआ कि गोपाल भगवान हैं भी | उन्होने परीक्षा लेने के लिए सारे ग्वाल बालों के साथ उन्हें एक गुफा में बंद कर दिया | ब्रह्मा जी का जब संदेह दूर हुआ तब उन्होने गुफा से सबको मुक्त किया लेकिन तब तक एक वर्ष बीत गये | इस बीच भगवान ने गुफा में बंद सबका अलग अलग रूप बनाकर बृंदावन वाशियों को यह महसूस नहीं होने दिया कि उनके बछड़े और बच्चे गुफा में क़ैद हैं | ब्रह्मा जी अपनी ग़लती के लिए क्षमा याचना के लिए जिस स्थान पर आए थे उसी स्थान का नाम चौमुहा है क्योंकि ब्रह्मा जी को देखकर लोग आश्चर्य में बोल उठे , वो देखो चौमुहा आया है !

भगवान ने गाय चराकर दुनिया को यह शिक्षा दी थी कि लोग अपने को गाय से जोड़ें | माँ का और गाय का दूध जीवन पर्यंत अमृत की तरह शरीर की रक्षा करता है और आपको विभिन्न बीमारियों से बचाता है | गाय के दूध से शरीर बछड़े की तरह फुर्तीला रहता है और आपके मस्तिस्क का पूर्ण विकास करता है, सात्विक सोच उत्पन्न करता है | भैसा यमराज की सवारी है और नंदी महादेव की सवारी है | गोगोबर और गोमूत्र से पन्च्गब्य बनता है जिसका सेवन देवता करते हैं | गंगा, गीता, गायत्री और गाय हमारी माताएँ हैं इनकी रक्षा हमारा परम कर्तब्य है |

तेरो लाला यशोदा छल गयो रे, मेरो माखन चुराकर बदल गयो रे |

मैने चोरी से मटकी उठाते देखा, माल चोरी का खूब उड़ाते देखा |

मेरो आँचल पकड़कर मचल गयो रे, तेरो लाला यशोदा छल गयो रे ….

छठा दिवस 

गो वर्धन अर्थात वह पर्वत जो गौओं के विकास में सहयोगी था | जहाँ वर्ष भर प्रचूर मात्रा में हरा-हरा चारा उगा करता था | अब भगवान कृष्ण 10 वर्ष की आयु के हो गये थे | इंद्र के प्रकोप से जब गोकुल में अतिब्रिष्टि होने लग गयी तब भगवान ने गो वर्धन को छत्र के रूप में अपनी उंगली से उठाकर पूरे क्षेत्र की रक्षा की | उसके नीचे सारे ग्वाल, बाल, गोपी, गोप गाय बछड़े सबको शरण मिला | भगवान की इस लीला को देखकर सभी ग्वालों को संदेह हो गया कि कृष्ण स्वम नारायण हैं | भगवान ने समझा अब बात तो बिगड़ जाएगी | ग्वालों का उनके प्रति स्वाभाविक व्यवहार का आनंद समाप्त हो जाएगा | उन्होने बात बनाई कि उन्हें एक ऋषि ने आशिरबाद दिया था कि आवश्यकता पड़ने पर वह जिसे देखेंगे उन सबकी शक्ति उन्हें मिल जाएगी | अतः उनने गोवर्धन को उठाने के पूर्व सारे मनुष्य और पशुओं को देख लिया और सबके बल मिल जाने के कारण वे गोवर्धन को उठाने में समर्थ हो गये | भोले ग्वालों को भरोसा आ गया | उन्होने कहा, ‘तूने बहुत माखन चुराया है, न जाने क्या क्या चुराया है और आज तूने हमलोगों के शक्ति की चोरी कर ली ! ला, हमारी ताक़त वापस कर !

मैं तो गोवर्धन को जाऊंगी नहीं माने मेरो मनवा | मैं तो परिक्रमा को जाऊंगी नहीं माने मेरो मनवा…

गिरिराज वन में चंद्र सरोवर है | भगवान 11 वर्ष के हो चुके थे | शरद पूर्णिमा की रात को चंद्र सरोवर के पास भगवान ने ऐसी बंशी बजाई की सारी गोपियाँ जैसी भी स्थिति में थीं वहाँ से बंशी की ओर आकर्षित होकर दौड़ पड़ीं | जब गीपियाँ वहाँ पहुँचीं तो कृष्ण ने उनके साथ ऐसी रास लीला की कि सारे देवता गण उसे देखकर मुग्ध हो गये | इसी बीच गोपियों को अहंकार हो गया कि वे भगवान की सबसे बड़ी भक्त हैं | भगवान को अहंकार किसी भी रूप में प्रिय नहीं है | अतः वे वहाँ से गायब हो गये | गोपियाँ रोने लगीं और वनस्पतियों से पूछने लगीं कि क्या उन्होने गोपाल को देखा है | महाराज जी कहते हैं कि गोपियाँ आत्मा की प्रतीक हैं और कृष्ण परमात्मा के | परमात्मा का कोई स्वरूप नहीं होता | फ़्रिज़ में रखा पानी जिस वर्तन में जमा दिया जाय उसी के शक्ल का हो जाता है शर्त यह है कि फ़्रिज़ के अंदर का तापमान शून्य डिग्री का होना चाहिए | इसी तरह जिनकी आत्मा में काम, क्रोध, मद, मोह शून्य हो जाता है उस आत्मा को उसकी इक्षानुसार रूप में परमात्मा उसे दर्शन देते हैं | अपने भक्तों के लिए भगवान निरंकार से साकार हो जाते हैं | आप अपने अहंकार को यह सोच कर नष्ट कर सकते हैं कि आप उत्कृष्ठ अवस्था को इसलिए प्राप्त कर सकें हैं क्योंकि उसमें बहुत लोगों का सहयोग शामिल है |

एक दिन नारद जी कन्स से मिले और बोले कि, कन्स, एक के बाद एक तुम्हारे विशेष योद्धा समाप्त हो रहे हैं कृष्ण को तुम ऐसे नहीं मार सकते | इस पर कन्स ने कहा फिर क्या उपाय है मुनिवर ? नारद जी ने सुझाया कि दशहरे के मेले में अखाड़ा लगता है | अक्रूर जी को भेजो वे कन्हैया को बुला ले आवें और अखाड़े में योद्धाओं को इशारा कर दो | कन्स को यह सुझाव अच्छा लगा | अंत में 11 वर्ष 56 दिन की आयु वाले भगवान श्री कृष्ण ने अपने मामा का केश पकड़कर पटक-पटक कर मार डाला |

28 वर्ष के श्रीकृष्ण ने द्वारिका से नागपुर तक की यात्रा केवल 12 घंटे पूरी कर ली और रुक्मणी जी का हरण करके जब लौटे तब उन्होने शिशुपाल और जरासंधु की सेना की ललकार पर रथ का सारथी रुक्मणी जी को बनाया और स्वयं युध करने लगे | तभी बल्दाउ भैया अपनी सेना लेकर वहाँ पहुँच गये | भयंकर युध हुआ | विरोधी सेनाएँ परास्त हुईं और भगवान रुक्मणी जी को लेकर घर वापस आ गये | जै कन्हैया लाल की हाथी घोड़ा पालकी ….

सातवा दिवस 

भगवान श्री कृष्ण ने भौमासूर का बध करके 16100 कन्याओं को मुक्त कराया और उनसे सामूहिक पाणीग्रहण संस्कार किया | यहाँ नारद जी को आश्चर्य हुआ कि भगवान इतनी संख्या मे गृहस्थी कैसे चलाएँगे | इसको देखने के लिए वे हर रानी के घर गये और सभी जगह उन्होने भगवान को अपनी दिनचर्या करते हुए पाया | आशय यह है कि भगवान सर्वत्र विद्द्य्मान हैं | वे गज़ को ग्राह से मुक्त करने के लिए तत्पर हैं तो एक पुकार पर द्रौपदी की साड़ी के रूप में उपस्थित हैं | बस आपको समर्पित भाव से पुकारने की आवश्यक्त है |

राष्ट्रपति बारक ओबामा को किसी ने बताया कि हनुमान जी अपने भक्तों पर बहुत शीघ्र कृपा करते हैं | ओबामा जी को भरोसा हो गया और सबको पता है उनमें आलोकिक क्षमता का विकास हुआ और वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति बने | डॉक्टर अब्दुल कलाम को बचपन से ही गीता पाठ की प्रेरणा हुई और फिर वे देश के सबसे बड़े वैज्ञानिक तत्पश्चात देश के राष्ट्रपति बने |

तुमने घनश्याम अधीनों को जो तारा होगा, तो कभी हमको भी तरने का सहारा होगा |

भगवान के जीवन का अगर गंभीरता पूर्वक चिंतन किया जाय तो यह स्पष्ट होगा कि उन्होने कभी रिश्तों को महत्व नहीं दिया | उन्होने हमेशा सत्य का साथ दिया | पांडवों की तुलना में दुर्योधन भगवान का ज़्यादा करीबी रिश्तेदार था लेकिन महाभारत युद्ध में उन्होने पांडवों का साथ दिया | शिशुपाल उनकी बुआ का बेटा था लेकिन भगवान को उसका बध करने में तनिक भी मोह नहीं पैदा हुआ | अपने ही दुराचारी यदुबंशी कुल का विनाश करने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं हुआ | हम आप रिश्तों को महत्व देते हैं और उस समय राष्ट्र हित को ताख पर रख देते हैं | प्रत्याशी के गुण दोषों को भूलकर जाति, धर्म के नाम पर वोट देते हैं |

विभीषण भगवान राम जी के शरण में तो गया लेकिन अपने भाई के प्रति उसका भी मोह समाप्त नहीं हुआ | रामजी और रावण के बीच 10 दिनों तक युद्ध होता रहा लेकिन उसने भगवान को नहीं बताया कि रावण की नाभि में अमृत है | जब भगवान ने विभीषण को साथ लेकर यद्ध किया और जब रावण के द्वारा उस पर प्रहार किए गये घातक शस्त्र को रामजी ने उसको हटते हुए खुद झेल लिया तब विभीषण का मोह भंग हुआ और तब उसने अमृत का रहस्य भगवान को बताया | इसी तरह भगवान ने कैकेयी का मोह भंग किया | 14 वर्षों का वनवास पूरा करके जब राम जी अयोध्या आए तब वे पहले कैकेयी माँ के महल गये | और जब माँ कहकर पुकारा तो कैकेयी रो पड़ी और भगवान को प्रेम बॅश हृदय से लगा लिया | आज संसार संबंधों के भ्रम में फिर फँस गया है |

भगवान अग्नि की तरह हैं | ठंढ से बचने के लिए उनके पास जाना ही पड़ेगा, उनको याद करना ही पड़ेगा | सुदामा गुजरात के पोरबंदर में रहते थे और भगवान कृष्ण की राजधानी द्वारिका थी | दोनो स्थानों के बीच की दूरी 100 किलोमीटर है | विद्यालय की शिक्षा प्राप्त करने के बाद सुदामा को कृष्ण से अलग हुए 50 वर्ष बीत गये थे | घोर ग़रीबी सहन कर लिया लेकिन वे अपने मित्र से मिलने नहीं गये | अंत में उनकी पत्नी ने बहुत आग्रह करके उन्हें द्वारिका भेजा | दीन दयाल भगवान ने उनका कायाकल्प कर दिया |

शीश पगा न झगा तन में प्रभु जाने को आहि बसे केहि ग्रामा

धोती फटी सी लटी दुपटी अरू पान्य उपानह की नहीं सामा ….

महाभारत युद्ध के पश्चात भगवान जब बृंदावन लौटे तब नंद बाबा की उम्र 150 वर्ष की हो गयी थी और यशोदा मैया की 145 वर्ष | बाबा ने कहा हे पुत्र, तेरी प्रतीक्षा में हमने अभी तक तीर्थ नहीं किया है | भगवान ने अपने माता पिता की अवस्था को देखते हुए सारे तीर्थों का आवाहन करके वहीं बुला लिया |

व्यास जी महाराज ने एकल विधयालय को सहयोग करने का आवाहन किया | उन्होने कहा जिस गाँव में कोई नहीं पहुँचता वहाँ एकल विधयालय अपने कथा व्यासों और शिक्षकों के माध्यम से लोगों में भारतीय संस्कृति और शिक्षा का विकास करती है | इसके अतिरिक्त एक विधयालय सिर्फ़ 16000 रुपये सालाना में चलता है |

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