साक्षात्कार

युवा संत मानस मर्मज्ञ श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी का जन्म 1969 के प्रथम नवरात्र को मुरादाबाद के बिलारी तहसील में हुआ। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के धनी अतुलजी ने रुहेलखंड विश्वविद्यालय से विज्ञान विधा में स्नातक और परास्नातक की उपाधि ली। इसके बाद सिविल सेवा की तैयारी के लिए दिल्ली आ गए। अपने गहरे सामाजिक लगाव के चलते इन्होंने 1991 में भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली से परास्नातक भी किया। इसी दौरान एक संत से हुई मुलाकात ने इनके जीवन की धारा ही बदल दी। दिल्ली छोड़ इन्होंने वृंदावन का रुख किया। यहां संत विजय कौशल जी महाराज से गुरु ज्ञान लिया और खुद को धर्म प्रचारक के रुप में स्थापित किया। पिछले 20 वर्षों में इन्होंने देश के ज्यादातर शहरों के 200 से ज्यादा स्थानों पर रामकथा के माध्यम से हिंदू धर्म का संदेश दिया। इनका अहम मकसद वनवासी क्षेत्र में धर्म प्रचार व गौशाला संचालकों की सेवा के लिए कथा कहना है। 

एक एक्सक्ल्यूसिव इंटव्यू में इन्होंने धर्म संदेश के साथ अपने जीवन के बहुतेरे अनछुए पहलुओं को साझा किया। 

धर्म संदेश: गुरु जी, अपने बारे में कुछ बताइए। कोई स्मृति, जिसने आपके जीवन पर गहरा असर डाला हो?
अतुल कृष्ण जी: बचपन की बहुतेरी स्मृतियां आनंदित करती हैं। हां, जहां तक जीवनधारा बदलने का सवाल है तो बात 1991 की है। दिल्ली में मैं आईएएस की तैयारी कर रहा था। एक संत से मुलाकात हुई। उन्होंने पूछा कि आप क्या बनना चाहते हो? मैंने सपाट सा जबाव दिया, दीपक। उनका अगला सवाल था, पारस क्यों नहीं, वह तो लोहे को सोना बना सकता है? मैने कहा कि सही है, लेकिन वह खुद नया पारस नहीं बना सकता। जबकि दीपक नया दीपक तैयार करने के साथ हजारों को रोशनी भी देता है। इस पर मुस्कराते हुए उन्होंने कहा कि बनना दीपक चाहते हो और कोशिश पारस बनने की कर रहे हो। इसने हमारे जीवन की धारा बदल दी। दिल्ली से बोरिया-बिस्तर समेटकर सीधा वृंदावन पहुंचा। जहां अपने परम पूज्य गुरु विजय कौशल जी महाराज के पास पहुंचा। पढ़ाई के दौरान धर्म-अध्यात्म की तरफ झुकाव होने से इन्हें मैं बचपन से जानता हूं। गुरुजी से दीक्षा ली और रामकथा से भी अवगत हुआ। फिलहाल चारों धामों और चारों दिशाओं में 200 से ज्यादा राम-कथा कह चुका हूं। मेरा जो उद्देश्य रहता है, वह वनवासी क्षेत्र में धर्म को जगाना, कथाएं कहना और गौशालाएं चलाने वालों की सेवा के लिए कथा कहना। नए विद्यार्थियों में संस्कार का बढ़ावा देना भी हमारा मकसद है। जहां भी मैं कथा कहने जाता हूं तो किसी एक स्कूल में प्रेयर एसेंबली में मैं विद्यार्थियों को संबोधित करता हूं।

धर्म संदेश: गुरु जी, अगर आप कहते हैं कि मैं हिंदू हूं व धार्मिक भी। तो आपके मुताबिक इसका मतलब क्या होता है?
अतुल कृष्ण जी: हिंदू होने का मतलब है संपूर्ण मानवता को प्रेम करने वाला, धर्म के अनुसार चलने वाला व्यक्ति। लेकिन धर्म का अर्थ पूजा-पाठ नहीं, वरन सत्य से है। धर्म न दूसर सत्य समाना...। सृष्टि में जो भी सत्य है, मसलन, सूर्य का निकलना, दिन-रात्री होना...। परमात्मा ने ज्ञान बनाया, जिससे सत्य की पहचान होती है। जगद्गुरु शंकराचार्य का संदेश है कि दोष: विवर्जित: यत्..., यानि जीवन में जिससे दोष हट जाएं, वहीं ज्ञान है। छोटी-छोटी जीवन शैली है जो वास्तव में सत्य है। वही हिंदूत्व है। धार्मिक होने का मतलब लाखों वर्ष पहले ऋषियों ने शास्त्र के अनुसार हमें जो ज्ञान दिया है उसके अनुसार जीना, यही धार्मिकता है।

धर्म संदेश: समकालीन परिप्रेक्ष्य में हिंदू धर्म को आप किस नजरिए से देखते हैं?
अतुल कृष्ण जी: ये जो हिंदुत्व है आज उसे तेजी से बचाने और फैलाने की जरुरत है। दुनिया मे यही इकलौती विचारधारा है, जिसमें प्राणियों में सद्भावना की बात की जाती है। मनुष्य की भोग लालसाओं के कारण जैव विविधता नष्ट हो रही है। विभिन्न पशु पक्षियों की प्रजातियां नष्ट होती जा रही। प्राणियों में सदभावना की आज निहायत जरुरी है।

धर्म संदेश: हिंदु धर्म की सबसे बड़ी मजबूती आप किसे मानते हैं?
अतुल कृष्ण जी: सबसे बड़ी मजबूती वह सिद्धांत है जिसमें हम कण-कण में परमात्मा का वास देखते हैं। ईशा वाद मिदम् सर्वम् यत् किंचन जगत्याम् जगत...। महात्मा गांधी ने कहा है कि अगर कोई हमारे सारे धर्म ग्रंथों को नष्ट भी कर दे और यह एक पंक्ति बच जाए तो पूरा हिंदू दर्शन फिर से खड़ा हो जाएगा। जब प्रहलाद को बचाने के लिए पत्थर से भगवान प्रकट हुए तो पहली बार लोगों ने जाना कि कण-कण में भगवान का वास होता है।

धर्म संदेश: गुरु जी, समाज का एक बड़ा तबका है, जिसके लिए खुद को बचाए रखने का संघर्ष ही इतना बड़ा है कि उसके पास धर्म के लिए ज्यादा अवकाश ही नहीं।
अतुल कृष्ण जी: धर्म बाहर की नहीं, अंदर की वस्तु है। धर्म जिस समय बच्चे के मन में स्थापित होना शुरु होता है तो वह कमाई नहीं कर रहा होता। बल्कि पढ़ रहा होता है। धर्म तो बचपन में ही स्थापित किया जाता है। हमारे वेदांत दर्शन का मानना है कि बचपन में जिसका मन जैसा हो जाता है, वह उसी अनुसार जीता है। संस्कार को ही धर्म कहा जाता है। जहां सिखाया जाता है कि आपको कैसे जीना है। बुरी आदतों को नहीं पालना है, बड़ों का सम्मान करना है, संबंधों को बहाल रखना है, आदि-आदि...। यही सब धर्म का लक्षण है।

धर्म संदेश: धर्म की बाजार पर बढ़ती निर्भरता कहीं धर्म की जरुरत पर ही तो सवाल नहीं खड़ा कर रही। यही नहीं, समाज पर बाजार के बढ़ते असर व दबाव के बीच आप धर्म को कहां देख रहे हैं?
अतुल कृष्ण जी: बाजार के धर्म की जो बात हो रही है, तो बाहर पूजा-पाठ का दिखने वाला रुप धर्म नहीं है। धर्म के दस लक्षण शास्त्रों में बताए जाते हैं। धर्म के दया, पवित्रता, तप, सत्य आदि लक्षणों में पूजा कहीं भी नहीं है। यहां तो बचपन में ही संस्कारित किया जाता है। जहां तक बाजार के दबाव का सवाल है तो मुझे लगता है कि बाजार का दबाव कम पड़ रहा है, दबाव भोगवाद का बढ़ रहा है। वजह यह कि बाजार इसी पर चल रहा है। वहीं धर्म हमें यह शिक्षा देता है कि अगर भगवान शंकर हमारे अराध्य हैं तो उन्हें किसी चीज की जरुरत नहीं। भगवान श्री राम के आदर्श की बात करें तो त्यागमयी जीवन पद्धति का बोध होता है।

धर्म संदेश: आपके नजरिए से आधुनिक समाज व बढ़ती भौतिकता जनमानस की धार्मिकता पर क्या प्रभाव डाल रही है?
अतुल कृष्ण जी: भोगवाद के कारण दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी एड्स बढ़ रही है। इससे मनावता को बचाने के लिए सरकार जागरुकता अभियान चला रही है। लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी का अभियान नहीं चला सकती है। अगर राम जी का अभियान चलाकर सरकार सबको सिखाए कि एक पत्नी व्रत धारण करो, जिससे प्रेम करो उससे विवाह करो या जिससे विवाह करो उससे प्रेम करो। अगर बाकी दुनिया में लोग एक पत्नी के साथ रिश्ता रखें तो एड्स की बीमारी ही न हो। यानि ये जो धर्म है, यह जीवन को मर्यादित करता है। एक तरह से ब्रेक और क्लच का काम करता है।

धर्म संदेश: क्या आप ऐसा कोई समय देख रहे हैं जहां धर्म बाजारवादी होते समाज में आसानी से आम जनता तक पहुंच सके?
अतुल कृष्ण जी: बिल्कुल, पहुंच ही रहा है। संत तो पहुंचा ही रहे हैं इसको। यह इस पर निर्भर करता है कि जो धार्मिक लोग हैं, वह अंदर से कितने धार्मिक हैं। है क्या कि, केवल वाणी से काम नहीं चलेगा। आचरण में दिखना पड़ेगा। जब यह दिखेगा, तभी लोग इसे स्वीकार भी करेंगे। अभी देश की कुर्सी पर एक भी ऐसा नेता बैठ जाए, जिसके आचरण में धर्म हो। तो देश बहुत तेजी से बदलेगा। देखिए, लाल बहादुर शास्त्री हम लोगों के आदर्श थे। ऐसे लोग बैठ जाएं तो देश तरक्की करेगा। लेकिन आज राजनेताओं, डाक्टरों, पत्रकारों के साथ धर्मात्माओं के भी स्टिंग ऑपरेशन हो रहे हैं। समाज के किसी भी क्षेत्र में कोई दिखाई नहीं दे रहा है जो जनता का हीरो बन सके। इसकी बड़ी आवश्यकता है।

धर्म संदेश: राजनीतिक सत्ता व आर्थिक सत्ता का केंद्र दिल्ली व मुंबई है, आप धार्मिक सत्ता का केंद्र कहां पाते हैं और क्यों?
अतुल कृष्ण जी: इसको भी दिल्ली, मुंबई में ही होना पड़ेगा। यह जो आर्थिक रुप से बड़े लोग हैं। पुराने उद्यमी सेठ होने के साथ धार्मिक भी थे। मसलन बिड़ला जी बड़े आध्यात्मिक हुआ करते थे। अभी भी जो देश के बड़े व्यापारी हैं अगर वे धार्मिक होंगे तो उनके सानिध्य में रहने वाले भी सीखेंगे। संस्कार हमेशा उपर से नीचे की ओर चलता है। झोपड़ी में रहने वाले से कोई नहीं सिखेगा।

धर्म संदेश: हरिद्वार, प्रयाग, काशी जैसे धार्मिक शहर क्यों नहीं?
अतुल कृष्ण जी: मैं नहीं मानूंगा इसको। ये केंद्र केवल तीर्थ हैं। यहां नए विद्यार्थियों को शिक्षित किया जा सकता है। अगर दिल्ली के सत्ताधीशों पर धर्म का असर दिखाई दे, तो उसका आनंद कुछ और होगा। तब बाकी देश सीखेगा।

धर्म संदेश: क्या आप मानते हैं कि बहुतेरे देशी-विदेशी स्कॉलर और राजनीतिज्ञ एक विशेष मकसद के तहत हिंदू धर्म की शिक्षाओं की गलत व्याख्या कर रहे हैं।
अतुल कृष्ण जी: निश्चित रुप से। वे हिंदू धर्म को पहचानते ही नहीं। वे सोचते हैं कि लगातार प्रहार कर हिंदुत्व को ही नष्ट कर दो। इसी मकसद को लेकर उनकी सारी व्याख्याएं होती है।

धर्म संदेश: हिंदू या भगवा आतंकवाद राजनीतिक शब्दकोश के नए शब्द हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
अतुल कृष्ण जी: असल में यह सोची-समझी साजिश के तहत है। भगवा के साथ आतंकवाद शब्द का प्रयोग कर देश की नई व युवा पीढ़ी के मन में घृणा पैदा करने की कोशिश की जा रही है। इससे यह पीढ़ी किसी भी संत को नहीं मानेगी, उसकी नजर में सब खलनायक होंगे। बावजूद इसके उन्हें ज्ञान की जरुरत होगी। इसके लिए क्रिश्चियन मिशनरी संसाधन मुहैया कराएगी। अब अगर नई पीढ़ी क्रिश्चियन मिशनरी को मानेगी तो पूरा देश फिर से क्रिश्चियनिटी की ओर बढ़ेगा।

धर्म संदेश: क्या आपको नहीं लगता कि इस शब्द के प्रयोग से हिंदुओं की भागीदारी धार्मिक गतिविधियों में कम होगी।
अतुल कृष्ण जी: मुझे तो ऐसा ही लग रहा है। हां, देश की मीडिया को कितना लग रहा है, यह सोचने की जरुरत है। चूंकि ऐसे सभी शब्दों को मीडिया के कारण बढ़ावा मिल रहा है। देखा जाए तो धार्मिक व अधार्मिक सभी जगह हैं। अब यह तय करना है कि कौन जीतेगा। भगवान ने गीता में साफ कहा है कि सतोगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ेगा और तमोगुण को बढ़ाकर सतोगुण बढ़ेगा। अब यह दबाना तो पड़ेगा ही, शांत बैठने से तो कुछ होगा नहीं। यह तो वैचारिक युद्ध है। इस वैचारिक युद्ध को लडऩे के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।

धर्म संदेश: इसके लिए हिंदू समाज को क्या करना चाहिए?
अतुल कृष्ण जी: हिंदू समाज कर ही क्या सकता है? समाज खुद कुछ नहीं करता। इसमें जो श्रेष्ठ लोग होते हैं वही करते हैं। आपके हाथ में कलम है, आप कर सकते हैं। मेरे हाथ में माइक है, मैं कर सकता हूं। यह चैनल पर जो लोग बैठे हैं, रामदेव जी हैं, जितना कर सकें, सबको करना चाहिए।

धर्म संदेश: एक अभिभावक के रुप में आप अपने बच्चे को हिंदू धर्म का पहला पाठ क्या बताना चाहेंगे?
अतुल कृष्ण जी: हम सभी जो पहला पाठ पढ़ाते हैं, वह दया का पाठ है। यह धर्म का सबसे बड़ा आधार है। मैं फिर उसी सूत्र पर आ रहा हूं, कि प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का वास है। किसी ने एक ऋषि से पूछा, तेरा घर कहां है। जवाब मिला, वसुधैव कुटुंबकम। फिर पूछा, पूरी धरती तेरा घर कैसे हो गई? उसने कहा, सत्य ही परमात्मा है। जो परमात्मा मेरे भीतर है वही सबके भीतर। इसलिए सब मेरे अपने हैं, कोई पराया नहीं है। स्वामी विवेकानंद जी ने भी शिकागो में कहा था कि आपने जहां-जहां दुनिया के विभिन्न देशों की खोज की। वहां के हजारों नागरिकों को मार दिया। अगर आपके बच्चों को आपका इतिहास पता चल जाए तो आपको अपने मुंह पर हिंद महासागर का कीचड़ भी पोतने के लिए कम पड़ जाएगी। तो यह वे लोग हैं, जो केवल ऊपर से शांति की बात करते हैं। जबकि हमारे यहां कर्मकांड के बाद शांति का मंत्र बोला जाता है। हमारे ऋषियों ने जो लाइफ स्टाइल दिया है वह किसी को अशांत नहीं किया। इसके उलट पश्चिम का विज्ञान समस्या खड़ी कर रहा है। जल प्रदूषित हो रहा है, आक्सीजन घटती जा रही है, ओजोन लेयर खत्म हो रही है, उर्जा बेवजह नष्ट हो गई है...। अब अगर पृथ्वी को बचाना है तो धर्म की शरण में जाना ही पड़ेगा।

धर्म संदेश: बतौर गुरु, आप उन किशोरों को कौन सी किताब सजेस्ट करेंगे, जो सनातन धर्म जानना चाहता है।
अतुल कृष्ण जी: मैं दो किताब सजेस्ट करुंगा। जैसे मनुष्य की दो आंखे होती है वैसे ही भारत की भी दो आंखे गीता और रामायण के रुप में हैं। गीता आत्मा का सिद्धांत है और रामायण जीवन का व्यवहारिक रुप। भगवान श्रीराम ने जीवन के आचरण से सिखाया कि मनुष्य को कैसा होना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने आत्मा के पूरे सिद्धांत को समझाया। आज का युवा इस दो किताबों को पढ़कर आनंदित हो जाएगा। वहीं तीसरी पुस्तक महाभारत है। मैं समझता हूं कि दुनिया का जितना भी ज्ञान है वह सारा का सारा महाभारत में है। इसको काल्पिनक ग्रंथ की संज्ञा देकर हमारे पाठ्यक्रम में निकाल दिया है तो फिर वह कहां से शिक्षा लेगा।

धर्म संदेश: एक आखिरी सवाल, अगर आपको सृजन का मौका मिले तो किस तरह की दुनिया बनाएंगे?
अतुल कृष्ण जी: रामराज्य, धर्म पर आधारित ऐसा राज्य, जहां सर्वत्र सुख-शांति हो।

धर्म संदेश: गुरु जी, इतना समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रणाम।
अतुल कृष्ण जी: चिरायु, धन्यवाद। 

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