Thursday 10 March 2016

घोघा बाबा मंदिर में श्रीराम कथा

सत्संग से उन्नति, कुसंग से अवनति: भारद्वाज
सत्संग मनुष्य के विकास में सहायक सिद्ध होता है, जबकि कुसंग उसके पतन का कारण बनता है। अत: जीवन में सुख-शांति लानी है तो सत्संग में रहना जरूरी है। घोंघा बाबा मंदिर परिसर में चल रहे शताब्दी महोत्सव में श्रीराम कथा पर प्रवचन करते हुए ये बातें वृंदावन से आमंत्रित कथा वाचक आचार्य अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहीं।

शताब्दी महोत्सव के अंतर्गत चल रहे श्रीराम कथा के पांचवें दिन आचार्य ने सीता स्वयंवर और रामवन गमन की रोचक कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि माता सीता ने सहजता से भगवान शिव का धनुष उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रख दिया था, जिसे हटाना भी मुश्किल था। अत: राजा दशरथ ने सीता का स्वयंवर उसी अनुरूप सजाया, जिसमें शर्त रखी गई कि जो उस धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा सीता का विवाह उसी के साथ होगा। इधर, मां लक्ष्मी स्वरूपी माता सीता और भगवान विष्णु स्वरूप श्रीराम के मिलन की घड़ी आई। रावण जैसे महाबली उस धनुष को हिला न सके। जब सारे राजा हार गए तो राजा दशरथ निराश होकर कह बैठे कि लगता है यह धरती शूरवीरों से खाली हो गई है। इस पर लखन क्रोधित होकर सभा में उठे और कहा कि उन्हें गुरु की आज्ञा मिल जाए तो वे धनुष को एक झटके में तहस-नहस कर सकते हैं। उन्हें क्रोधित होता देख बड़े भाई राम व गुरु विश्वामित्र ने उन्हें शांत कराया और राम को स्वयंवर में जाकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की आज्ञा दी। इधर जैसे ही राम उठे उन्हें देख सारे राजा-महाराजा यह कहते हुए अट्टहास करने लगे कि सुकुमार सा दिखने वाला राजकुमार क्या कर पाएगा। दूसरी ओर माता सीता मन ही मन प्रफुल्लित होते हुए सोच रहीं थीं कि मां गौरी से मांगा गया उनका वरदान पूरा होने वाला है। राम ने धनुष को प्रणाम कर एक झटके में उसे उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाई। परशुऱाम को जब धनुष टूटने की आवाज सुनाई दी तो वे जनकपुरी भागे चले आए और सभा के बीच आकर कहने लगे कि मेरे शिव का धनुष तोड़ने का दुस्साहस किसने किया। उसे दंडित करूंगा। इस पर जब लक्ष्मण ने हस्तक्षेप किया तो राम ने उन्हें रोकते हुए क्षमा मांगी। जैसे ही राम, परशुराम के सामने गए वे भांप गए कि वे तो साक्षात भगवान विष्णु के अवतारी हैं। उनका क्रोध शांत हुआ अौर फिर धूमधाम से स्वयंवर हुआ।

घोघा बाबा मंदिर में श्रीराम कथा के पांचवे दिन कथा का आनंद लेते भक्त।

मंथरा की कुसंगति में पड़ी कैकई ने सब कुछ गंवाया

मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। अन्यथा सर्वनाश हो जाता है। कैकई राम को भरत से भी ज्यादा मानती थीं। वह कहती थी कि राम जैसा पुत्र उनकी कोख से क्यों नहीं हुआ। जब कुसंगति रूपी मंथरा की संगति में आईं तो सारी सुख-शांति समाप्त हो गई। एक ओर राजा दशरथ की राम के वियोग में मृत्यु हो गई, वह विधवा हो गईं तो दूसरी ओर भरत ने उन्हें जीवनपर्यंत कभी मां का दर्जा न देने का संकल्प लिया।

जैसी भावना वैसा फल आचार्य ने कहा कि मनुष्य को कोई भी कार्य सद्भावना से करना चाहिए। अच्छी भावना से किए गए काम का फल भी अच्छा होता है। आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार खान-पान में भी भावना का प्रभाव पड़ता है। जिस भावना के साथ भोजन बनाया जाता है, उस भोजन का स्वास्थ्य पर भी वैसा ही असर पड़ता है। अत: भोजन बनाते समय माताओं को मन प्रसन्न रखना चाहिए। 

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