Sunday 2 October 2011

अमृत वचन


1. राग सुख के संस्कार से उत्तपन्न होता है और द्वेष दुख के संस्कार से उत्तपन्न होता है| -पतंजलि
2. शत्रु के गुण को भी ग्रहण क्रना चाहिए, गुरु के दोष बताने में भी संकोच नही करना चाहिए-वेदव्यास
3. दुख को बार-बार स्मरण करने से दुख बढ़ता है, और दुख को भुला देने से दुख मर जाता है-वेदव्यास
4. असफलता निराशा का कारण नहीं है अपितु नयी प्रेरणा है|
5. देश भक्त का अर्थ है देश के प्रति प्रेम, धर्म के पार्टी भक्ति और स्वाभिमान|
6.जो प्रेम प्रिय से बँधता है उससे पुरुषार्थ क्षीण होता है तथा जो सिद्धांत से बँधता है उससे पुरुषार्थ में वृद्धि होती है-उपनिषद्|
7. मौन की शक्ति से मानसिक कल्पनाओं व स्वप्नों को साकार रूप प्रदान किया जा सकता है|
8.असंतुष्टि का कारण है निरंतर बढ़ती इच्छाएँ|
9. सदा मुस्कुराते रहो, यह भी संतुष्टता की निशानी है|
10. समाज उत्थान में लगे व्यक्ति के तीन लक्षण होते हैं- सहानुभूति, श्रद्धा और वैराग्य-स्वामी विवेकानंद|
11. इस धरती पर हमारे पैदा होने का एक कारण है उस कारण का पता करोऔर पूर्ण मनोयोग से लग जाओ-स्वामी विवेकानंद|
12.राष्ट्र जीवन कमज़ोर होने पर राजनीति, समाज, शिक्षा और बुद्धि रोग ग्रस्त हो जाती है-स्वामी विवेकानंद|
13. संकल्प करने से कार्य की गति बढ़ जाती है और लक्ष प्राप्ति में कम समय लगता है|
14. जीवन में सफल होने के लिए टीन बातें कही गयी है-पुरुषार्थ, पूर्व कर्म और परमेश्वर की कृपा|
15. हमारी कथनी और करनी में अंतर नही होना चाहिए|
16. जो जीवन के दोषों को दूर करता है उसे ज्ञान कहते हैं|
17. अपने दुर्गुन भी अपने शत्रु होते हैं|
18. जहाँ भक्ति होती है वहाँ वासना नहीं होती|
19. बुराई स्वतः आती है अच्छे बने रहने के लिए प्रयास करना पड़ता है|
20. जब भी विचार प्रस्तुत करने का अवसर मिले हमे बोलना चाहिए ऐसा न कर, हो सकता है हम एक उत्तम विचार की हत्या कर दें|
21. जो समाज अपने भूतकाल से सबक न्ही लेता उसे अभिशप्त होना पड़ता है|
22. जो युवा अवस्था में तेजस्वी होता है वह बड़ा होकर महान बनता है|

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