(16 Nov) लखनऊ,16 नवम्बर। लायन्स क्लब राजधानी आनिन्द लखनऊ द्वारा विशाल खण्ड तीन में आयोजित दशम् गोवर्धन पूजा महोत्सव के पांचवे दिन प्रसिद्ध कथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि पहले व्यक्ति की आयु जब 100 वर्ष मानी गई थी अखिरी के 50 वर्ष की उम्र में वान्य प्रास्थ और सन्यास की व्यवस्था थी। आज न तो समान्य वर्ष आयु 100 वर्ष की हो रही न ही आश्रम व्यवस्था पर अमल किया जा सकता है। जीवन का धमर्, अर्थ ,काम, मोक्ष जैसी व्यवस्था होती है। धर्म पहले भी था आज भी है। मानव जीवन का लक्ष्य भोग नहीं है। केवल मोक्ष की ओर बढ़ना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।उन्होनंे कहा कि इसके लिए धर्म पहले आया फिर अर्थ कमाया जाए वह भी धर्म के अनुसार भौतिक संसाधन धर्म के अनकूल हो, मोक्ष सन्यास की अवस्था में वन जाने की न परिस्थितिया न इसकी कोई अवश्यकता है। वर्तमान न तो नदियों का जल निर्मल बचा है। न वनों में फल-फूल कंदमूल भी न रह गये। ऐसी अवस्था में क्या करें। इक्यावन, फिफ्टी वन, वृन्दावन तीनों की तुकबंदी तो नजर आती है इसकी अतुल कृष्ण बहुत गहन व्यख्या करते है। वह कहते है कि इन तीनों शब्दों की बात समान है। तीनों के आखिरी में वन शब्द है जैसे 51 वर्ष की अवस्था में पुरुष या नारी प्रवेश करे तो वह अपने मन को वृन्दावन को बनाने का प्रयास करे।इसका तत्पर्य है कि वह ग्रहस्थ जीवन में बना रहे। इसमें कोई कठिनाई नहीं है। वह अपना व्यवासय , नौकरी अजविका चलाता रहे। लेकिन इन सबका मोह माया त्याग करके वह अपने मन में इश्वर की आराधन करे तो बिना कहीं जाए वह मोक्ष की लक्ष्य की ओर बढ़ता रहेगा।रामकथा के मुख्य संयोजक राकेश अग्रवाल, आयोजक लायन्स क्लब राजधानी आनिन्द के अध्यक्ष राजेन्द्र पाण्डेय, डा. दिलीप अग्निहोत्री आदि उपास्थित रहे
Pages
- Home
- मंगल भवन
- जीवन परिचय
- अभिनव विचार
- साक्षात्कार
- श्रीराम कथा २०१६
- श्रीराम कथा 2017
- जन जागरण
- विदेश यात्रा
- कथा सार
- कथा व्यवस्था
- कथा की पूजन सामग्री
- आरती पत्रक
- समाचार
- कथा प्रसंग Video
- भजन गंगा Video
- श्रीराम कथा Video
- फोटो
- समाचार पत्र से
- मानस के मंत्र
- स्तोत्र रत्नावली
- आरती संग्रह
- कथा केलेंडर
- आगामी कथाये
- संपर्क
- लिंक
Friday, 11 March 2016
मनुष्य को केवल मोक्ष की ओर बढ़ना चाहिए- अतुल कृष्ण
(16 Nov) लखनऊ,16 नवम्बर। लायन्स क्लब राजधानी आनिन्द लखनऊ द्वारा विशाल खण्ड तीन में आयोजित दशम् गोवर्धन पूजा महोत्सव के पांचवे दिन प्रसिद्ध कथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि पहले व्यक्ति की आयु जब 100 वर्ष मानी गई थी अखिरी के 50 वर्ष की उम्र में वान्य प्रास्थ और सन्यास की व्यवस्था थी। आज न तो समान्य वर्ष आयु 100 वर्ष की हो रही न ही आश्रम व्यवस्था पर अमल किया जा सकता है। जीवन का धमर्, अर्थ ,काम, मोक्ष जैसी व्यवस्था होती है। धर्म पहले भी था आज भी है। मानव जीवन का लक्ष्य भोग नहीं है। केवल मोक्ष की ओर बढ़ना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।उन्होनंे कहा कि इसके लिए धर्म पहले आया फिर अर्थ कमाया जाए वह भी धर्म के अनुसार भौतिक संसाधन धर्म के अनकूल हो, मोक्ष सन्यास की अवस्था में वन जाने की न परिस्थितिया न इसकी कोई अवश्यकता है। वर्तमान न तो नदियों का जल निर्मल बचा है। न वनों में फल-फूल कंदमूल भी न रह गये। ऐसी अवस्था में क्या करें। इक्यावन, फिफ्टी वन, वृन्दावन तीनों की तुकबंदी तो नजर आती है इसकी अतुल कृष्ण बहुत गहन व्यख्या करते है। वह कहते है कि इन तीनों शब्दों की बात समान है। तीनों के आखिरी में वन शब्द है जैसे 51 वर्ष की अवस्था में पुरुष या नारी प्रवेश करे तो वह अपने मन को वृन्दावन को बनाने का प्रयास करे।इसका तत्पर्य है कि वह ग्रहस्थ जीवन में बना रहे। इसमें कोई कठिनाई नहीं है। वह अपना व्यवासय , नौकरी अजविका चलाता रहे। लेकिन इन सबका मोह माया त्याग करके वह अपने मन में इश्वर की आराधन करे तो बिना कहीं जाए वह मोक्ष की लक्ष्य की ओर बढ़ता रहेगा।रामकथा के मुख्य संयोजक राकेश अग्रवाल, आयोजक लायन्स क्लब राजधानी आनिन्द के अध्यक्ष राजेन्द्र पाण्डेय, डा. दिलीप अग्निहोत्री आदि उपास्थित रहे
Labels:
समाचार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment